Class 10 History Chapter 4 Notes in Hindi | औद्योगीकरण का युग

इस पोस्ट में क्या है ? show

Class 10 History Chapter 4 Notes in Hindi : covered History Chapter 4 easy language with full details & concept  इस अध्याय में हमलोग जानेंगे कि – औद्योगीकरण का युग की शुरुआत कैसे हुई(How did the era of industrialization begin?), औद्योगिक क्रांति का अर्थ क्या है(what is the meaning of industrial revolution)?, इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति के क्या कारण हैं(what are the causes of industrial revolution in England)?, कारखाने की शुरुआत कैसे हुईं(how the factory started)?, नये यांत्रिक अविष्कार की नींव कैसे पड़ी, औद्योगिक परिवर्तन की रफ्तार(pace of industrial change), सूती वस्त्र उद्योग, स्पिनिंग जैनी की खोज कैसे हुई(How the Spinning Jeannie was Invented)?, लोगों ने स्पिनिंग जेनी मशीन का विरोध क्यों किया(Why did people oppose the spinning jenny machine), इंगलैंड में श्रमिकों की आजीविका एवं उनके जीवन का वर्णन करें, उपनिवेशो में औद्योगीकरण की शुरुआत कैसे हुई(How did industrialization begin in the colonies?), मशीन उद्योग से पहले का युग कैसा था,  ईस्ट इंडिया कंपनी आने के बाद बुनकरों की स्थिति स्थिति कैसी थी, भारत में औद्योगीकरण की शुरुआत कैसे हुई(How did industrialization begin in India), भारत में औद्योगिकीकरण का प्रभाव, श्रमिक वर्ग एवं श्रमिक आंदोलन, फैक्ट्रियों का आना(coming of factories), लघु उद्योगों की बहुतायत? 

Class 10 History Chapter 4 Notes in Hindi full details

category  Class 10 History Notes in Hindi
subjects  History
Chapter Name Class 10 Era of Industrialization (औद्योगीकरण का युग) 
content Class 10 History Chapter 4 Notes in Hindi
class  10th
medium Hindi
Book NCERT
special for Board Exam
type readable and PDF

NCERT class 10 History Chapter 4 notes in Hindi

इतिहास अध्याय 4 सभी महत्पूर्ण टॉपिक तथा उस से सम्बंधित बातों का चर्चा करेंगे।


विषय – इतिहास   अध्याय – 4 

औद्योगीकरण का युग

Era of Industrialization


परिचय (Introduction) -: 

औद्योगीकरण का युग :-

जिस युग में हस्तनिर्मित वस्तुएं बनाना कम हुई और फैक्ट्री , मशीन एवं तकनीक का विकास हुआ उसे औद्योगीकरण का युग कहते हैं । इसमें खेतिहर समाज औद्योगिक समाज में बदल गई । 1760 से 1840 तक के युग को औद्योगीकरण युग कहा जाता है जो मनुष्य के लिए खेल परिवर्तन नियम जैसा हुआ ।

पूर्व औद्योगीकरण :-

यूरोप में औद्योगीकरण के पहले के काल को पूर्व औद्योगीकरण का काल कहते हैं । दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यूरोप में सबसे पहले कारखाने लगने के पहले के काल को पूर्व औद्योगीकरण का काल कहते हैं । इस अवधि में गाँवों में सामान बनते थे जिसे शहर के व्यापारी खरीदते थे ।

औद्योगिक क्रांति का अर्थ:- 

औद्योगिक क्रांति का शाब्दिक अर्थ है – उद्योग उत्पादन में होने वाला परिवर्तन | यानी औद्योगिक क्रांति का तात्पर्य उत्पादन प्रणाली में हुए उन परिवर्तनों से है जिनके फलस्वरूप जनसाधारण की अपनी कृषि व्यवस्था एवं घरेलू उद्योग-धंधों को छोड़कर नये प्रकार के बड़े उद्योगों में काम करने तथा यातायात के नवीन साधनों का उपयोग करने को मिला | अत: औद्योगिक क्रांति के कारण तीन वस्तुओं का जन्म हुआ – पहला कारखाना, दूसरा बड़े-बड़े औद्योगिक नगर तथा तीसरा पूँजीपति वर्ग |

औद्योगिक क्रांति शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांस के समाजवादी चिंतक लूई ब्लाॅ ने 1837 ई० में किया | यह क्रांति सबसे पहले इंगलैंड में हुई |

आदि-औद्योगीकरण का युग – इंगलैंड और यूरोप में कारखाना की स्थापना से पहले भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होने लगे थे | यह उत्पादन फैक्ट्रियों में नहीं होता था | किसी चीज की प्रारंभिक अवस्था को आदि कहते हैं | अत: औद्योगिकीकरण के प्रारंभिक चरण को इतिहासकारों ने आदि-औद्योगिकीकरण का नाम दिया है | इसमें चीजों का उत्पादन कारखानों के बजाय घरों में होता था |

गाँव और शहरों का संबंध – इस व्यवस्था में गाँवों में तथा शहरों में एक संबंध स्थापित हुआ | व्यापारी शहरों में रहकर अपना काम गाँव में चलाते थे | गाँव में अपने सामान का उत्पादन करवाकर उन्हें शहर ले जाकर बेचते थे | चीजों का उत्पादन कारखानों में न होकर घरों में होता था |

इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति के कारण –

औद्योगिक क्रांति यूरोप के दूसरे देशों को छोड़कर इंगलैंड में ही सर्वप्रथम हुई | इसके कुछ विशिष्ट कारण थे |

इंगलैंड की भौगोलिक स्थिति – द्वीप होने के कारण इंगलैंड बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित था | कच्चे माल को आयात तथा उत्पादित वस्तुओं वस्तुओं के निर्यात करने की सुविधा भी इंगलैंड में थी |

प्राकृतिक साधनों (खनिज) की उपलब्धता – इंगलैंड में खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे | इससे इंगलैंड के औद्योगिक विकास में काफी सुविधा हुई |

कृषि क्रांति – औद्योगिक क्रांति के पूर्व इंगलैंड में कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए थे | कृषि तथा पशुपालन की समुन्नत व्यवस्थाओं से भूमिपतियों की आमदनी काफी बढ़ गई |

कुशल कारीगर – कुशल कारीगरों के संपर्क में आने से इंगलैंड के मजदूरों के ज्ञान में वृद्धि हुई और उसके साथ ही खेतीबारी के तरीकों और उद्योग-धंधों में विकास हुआ |

जनसंख्या में वृद्धि – चिकित्सा एवं गरीबों की सहायता की व्यवस्था होने के कारण लोग रोगमुक्त हो गये तथा भुखमरी के शिकार होने से बच गये | इससे मृत्यु दर में कमी आई तथा इंगलैंड की जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि हुई |

पर्याप्त पूँजी की उपलब्धता – इस समय इंगलैंड में काफी मात्रा में पूँजी उपलब्ध थी | इस समय ब्रिटेन में विदेशों से काफी धन लाया गया | दास व्यापार तथा भारत से लूटकर लाये गये धन का निवेश इंगलैंड में हुआ |

वैज्ञानिक प्रगति – इस युग में जितने भी वैज्ञानिक आविष्कार हुए उनमें से अधिकांश इंगलैंड में ही हुए |

यातायात की सुविधा – 18वीं शताब्दी में परिवहन क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए | यातायात की सुविधा के लिए सभी प्रमुख शहरों को नहरों द्वारा जोड़ा गया | पुरानी नहरों को चौड़ा किया गया ताकि कई जहाज एक साथ आ-जा सके |

कारखानों की शुरुआत :-

सबसे पहले इंगलैंड में कारखाने 1730 के दशक में बनना शुरु हुए । अठारहवीं सदी के आखिर तक पूरे इंगलैड में जगह जगह कारखाने दिखने लगे ।

इस नए युग का पहला प्रतीक कपास था । उन्नीसवीं सदी के आखिर में कपास के उत्पादन में भारी बढ़ोतरी हुई ।

1760 में ब्रिटेन में 2.5 मिलियन पाउंड का कपास आयातित होता था ।

1787 तक यह मात्रा बढ़कर 22 मिलियन पाउंड हो गई थी ।

नये यांत्रिक अविष्कार:- 

जाॅन के-फ्लाइंग शटल-1733 ई०

जेम्स हारग्रिब्ज-स्पिनिंग जेनी-1765ई०

रिचर्ड आर्काराइट-वाटरफ्रेम-1769 ई० (स्पिनिंग फ्रेम)

क्राम्पटन-स्पिनिंग म्यूल-1779 ई०

एडमंड कार्टराइट-पावरलूम-1785 ई०

इली व्हिटनी-कपास ओटने की मशीन-1793ई०

टॉमस न्यूकॉम-पहला वाष्प इंजन

अब्राह्म डर्बी-लोहा पिघलाने की विधि

हम्फ्री डेवी-सेफ्टी लैम्प-1815 ई०

जार्ज स्तिफेंशन-वाष्पचलित रेल इंजन -1814 ई०

राबर्ट फुल्टन-वाष्पचलित पानी का जहाज

औद्योगिक परिवर्तन की रफ्तार:-

औद्योगीरण का मतलब सिर्फ फैक्ट्री उद्योग का विकास नहीं था । कपास तथा सूती वस्त्र उद्योग एवं लोहा व स्टील उद्योग में बदलाव काफी तेजी से हुए और ये ब्रिटेन के सबसे फलते फूलते उद्योग थे ।

औद्योगीकरण के पहले दौर में (1840 के दशक तक) सूती कपड़ा उद्योग अग्रणी क्षेत्रक था। रेलवे के प्रसार के बाद लोहा इस्पात उद्योग में तेजी से वृद्धि हुई । रेल का प्रसार इंगलैंड में 1840 के दशक में हुआ और उपनिवेशों में यह 1860 के दशक में हुआ ।

1873 आते आते ब्रिटेन से लोहा और इस्पात के निर्यात की कीमत 77 मिलियन पाउंड हो गई । यह सूती कपड़े के निर्यात का दोगुना था ।

लेकिन औद्योगीकरण का रोजगार पर खास असर नहीं पड़ा था । उन्नीसवीं सदी के अंत तक पूरे कामगारों का 20% से भी कम तकनीकी रूप से उन्नत औद्योगिक क्षेत्रक में नियोजित था । इससे यह पता चलता है कि नये उद्योग पारंपरिक उद्योगों को विस्थापित नहीं कर पाये थे ।

सूती वस्त्र उद्योग:- 

सूती वस्त्र उद्योग इंगलैंड का सबसे अधिक उत्पादन वाला उद्योग बना | 19वीं सदी में ब्रिटेन कपड़ा का सबसे बड़ा उत्पादक बने गया था | 19वीं सदी में कपड़ा उद्योग में विकास होने के बावजूद सारा उत्पादन कारखाना में न होकर कुछ उत्पादन घरेलू तरीकों से भी होता था |

हाथ का श्रम– औद्योगिकीकरण में ब्रिटेन में सस्ते मानव श्रम की भूमिका भी अग्रणी रही | श्रमिकों की संख्या बढ़ने से उनको कम वेतन पर नौकरी करनी पड़ी | मिल मालिकों को मशीन पर लगाने वाले खर्च से कम खर्च पर श्रमिक उपलब्ध हो जाते थे | उन्हें मशीनें लगाने पर अधिक दिलचस्पी नहीं थी | मशीन लगवाने में अधिक पूँजी की जरुरत होती थी तथा उनके खराब होने पर मरम्मत करवाने में भी अधिक खर्च आता था | अत: उद्योगपति मशीन की बजाय हाथ के श्रम को अधिक महत्त्व देते थे इससे उन्हें ज्यादा फायदा होता था | श्रमिकों की संख्या आवश्यकतानुसार घटाया-बढ़ाया जा सकता था |

स्पिनिंग जैनी:-

एक सूत काटने की मशीन जो जेम्स हर गीवजलीवर्स द्वारा 1764 में बनाई गई थी ।

स्पिनिंग जेनी मशीन का विरोध :-

उन्नीसवीं सदी के मध्य तक अच्छे दौर में भी शहरों की आबादी का लगभग 10% अत्यधिक गरीब हुआ करता था । आर्थिक मंदी के दौर में बेरोजगारी बढ़कर 35 से 75% के बीच हो जाती थी ।

बेरोजगारी की आशंका की वजह से मजदूर नई प्रौद्योगिकी से चिढ़ने लगे । जब ऊन उद्योग में स्पिनिंग जेनी मशीन का इस्तेमाल शुरू किया गया तो मशीनों पर हमला करने लगे ।

1840 के दशक के बाद रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई क्योंकि सड़कों को चौड़ा किया गया , नए रेलवे स्टेशन बनें , रेलवे लाइनों का विस्तार किया गया ।

इंगलैंड में श्रमिकों की आजीविका एवं उनका जीवन: 

शहरों में बहुतायत नौकरी की खरब सुनकर गाँव के मजदूर जो बेकारी की समस्या से जूझ रहे थे शहर की ओर रुख करने लगे | नौकरी ढूँढ़ने के क्रम में उन्हें पुलों के नीचे सडकों के किनारे अथवा सरकारी या निजी रैन बसेरों में समय गुजरने पड़ते थे |

बेरोजगारी की आशंका से मजदूर मशीन तथा नई प्रौद्योगिकी का विरोध करने लगे | जेम्स हारग्रीव्ज ने ने 1764 में स्पिनिंग जेनी का अविष्कार किया था | इस मशीन के आने से मजदूरों की माँग घटने लगी |

अत: इसका प्रभाव महिलाओं पर अधिक पड़ा और ब्रिटेन की महिलाओं ने स्पिनिंग जेनी मशीन पर हमला कर उसे तोड़ना शुरू कर दिया क्योंकि इस मशीन ने उनका रोजगार छीन लिया था |

श्रमिक आंदोलन – इंगलैंड में श्रमिक संघ की स्थापना हुई | मजदूर वोट देने के अधिकार भी माँग रहे थे | इसके लिए श्रमिक संघ के कहने पर सन् 1838 में उन्होंने चार्टिस्ट आंदोलन किये |

उपनिवेशो में औद्योगीकरण:- 

आइए अब भारत पर नजर डाले और देखे की उपनिवेश में औद्योगीकरण कैसे होता है ।

मशीन उद्योग से पहले का युग :-

अंतर्राष्ट्रीय कपड़ा बाजार में भारत के रेशमी और सूती उत्पादों का दबदबा था। उच्च किस्म का कपड़ा भारत से आर्मीनियन और फारसी सौदागर पंजाब से अफगानिस्तान , पूर्वी फारस और मध्य एशिया लेकर जाते थे।

सूरत , हुगली और मसूली पट्नम प्रमुख बंदरगाह थे। विभिन्न प्रकार के भारतीय व्यापारी तथा बैंकर इस व्यापार नेटवर्क में शामिल थे। दो प्रकार के व्यापारी थे आपूर्ति सौदागर तथा निर्यात सौदागर। बंदरगाहों पर बड़े जहाज मालिक तथा निर्यात व्यापारी दलाल के साथ कीमत पर मोल भाव करते थे और आपूर्ति सौदागर से माल खरीद लेते थे। 

मशीन उद्योग के बाद का युग (1780 के बाद ):- 

1750 के दशक तक भारतीय सौदागरों के नियंत्रण वाला नेटवर्क टूटने लगा। यूरोपीय कंपनियों की ताकत बढ़ने लगी। सूरत तथा हुगली जैसे पुराने बंदरगाह कमजोर पड़ गए । बंबई ( मुंबई ) तथा कलकता कलकत्ता एक नए बंदरगाह के रूप में उभरे ।

व्यापार यूरोपीय कंपनियों द्वारा नियंत्रित होता था तथा यूरोपीय जहाजों के जरिए होता था। शुरूआत में भारत के कपड़ा व्यापार में कोई कमी नहीं। 18 वीं सदी यूरोप में भी भारतीय कपड़े की भारी मांग हुई ।

ईस्ट इंडिया कंपनी आने के बाद बुनकरों की स्थिति:-

ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा राजनीतिक सत्ता स्थापित करने के बाद बुनकरों की स्थिति (1760 के बाद ):-

भारतीय व्यापार पर ईस्ट इंडिया कम्पनी का एकाधिकार हो गया । कपड़ा व्यापार में सक्रिय व्यापारियों तथा दलालों को खत्म करके बुनकरो पर प्रत्यक्ष नियंत्रण । बुनकरों को अन्य खरीदारों के साथ कारोबार करने पर पाबंदी लगा दी ।

बुनकरों पर निगरानी रखने के लिए गुमाश्ता नाम के वेतनभोगी कर्मचारी की नियुक्ति की गई। बुनकरो व गुमाश्ता के बीच अक्सर टकराव होते हैं| बुनकरों को कंपनी से मिलने वाली कीमत बहुत ही कम होती।

भारत में औद्योगीकरण:- 

औद्योगिक उत्पादन से भारत के कुटीर उद्योग बंद हो गये लेकिन वस्त्र उद्योगों के लिए बड़ी-बड़ी कारखाने स्थापित हुई | भारत में 1895 तक कपड़ा मीलों की संख्या उनचालीस हो गई , ब्रिटिश सरकार ने वहाँ से आयात शुल्क समाप्त कर दिया जिससे भारत में वहाँ के सामान कम मूल्य में बिकने लगे |

भारतीय उद्योगपति – भारतीय व्यापारियों पर सरकार का नियंत्रण कठोर होते थे, तथा उन्हें अपना तैयार माल यूरोप में बेचने में कठिनाई होती थी | भारत से तैयार माल निर्यात नहीं होते थे, सिर्फ कच्चे माल जैसे- कपास, नील, अफीम गेहुँ ही निर्यात किये जाने लगे | भारतीय उद्योगपति जहाजरानी का भी व्यापार नहीं कर सकते थे |

सन् 1907 ई० में जमशेद जी टाटा ने बिहार के साकची नामक स्थान पर टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (Tisco) की स्थापना की | जमशेदजी टाटा ने 1901 में टाटा हाईड्रो-इलेक्ट्रीक पावर स्टेशन की स्थापना की |

मजदूरों की उपलब्धता – कारखानों के विस्तार होने से मजदूरों की माँग बढ़ी | जहाँ भी कारखाने खुले आप-पास के इलाकों से ही मजदूर आते थे | धीरे-धीरे दूर-दूर से भी लोग काम की तलाश में आने लगे | मीलों की संख्या बढ़ने से मजदूरों की माँग भी बढ़ने लगी परंतु मजदूरों की संख्या मिल में रोजगार से अधिक रहती थी इसलिए कई मजदूरों की संख्या मिल में रोजगार से अधिक रहती थी इसलिए कई मजदूर बेरोजगार ही रह जाते थे | मिल मालिक नये मजदूरों की भर्ती करने के लिए एक जॉबर रखते थे | मालिक का विश्वसनीय कर्मचारी होता था | जॉबर अपने गाँव से लोगों को लाता था |

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद औद्योगिकीकरण में तेजी – प्रथम विश्वयुद्ध तक भारत के औद्योगिक विकास की प्रगति धीमी रही परंतु युद्ध की दौरान इसमें तेजी आई क्योंकि ब्रिटिश कारखाने युद्ध से जुडी सामग्री बनाने में व्यस्त थे | इसलिए भारत में मैनचेस्टर से आयात कम हो गया जिससे भारत को देशी बाजार मिल गया | अधिक दिनों तक युद्ध चलने से भारत के कारखानों में भी युद्ध के लिए जूट की बोरियाँ, फौजियों की वर्दी, कपड़े, टेंट, चमड़े के जूते आदि बनने लगे | इन सब के लिए नये कारखाने भी लगाये गये |

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद औद्योगिकीकरण – प्रथम विश्वयुद्ध ख़त्म होने के बाद मैनचेस्टर के निर्मित समान भारत में पहले जैसा स्थान नहीं पा सका | मैनचेस्टर के बने सामान की माँग सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि और भी जगहों में घट गई |

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद औद्योगिकीकरण में लगातार इजाफा हुआ | कई नये कारखाने लगाये गये | यद्यपि भारत में कोयला उद्योग का प्रारंभ सन् 1814 में ही हो चूका था जब रानीगंज, पश्चिम बंगाल में कोयले की खुदाई का काम आरंभ हुआ था |

सन् 1929-33 के विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने भारतीय उद्योग-धंधों को प्रभावित किया | भारत कच्चा माल में आत्मनिर्भर था जिसका मूल्य घट गया | निर्यात किये जाने वाले सामान का भी मूल्य घट गया |

भारत में औद्योगिकीकरण का प्रभाव:- 

औद्योगिकीकरण के कारण स्लम पद्धति का जन्म हुआ | मजदूर शहर में छोटे-छोटे घरों में रहने को बाध्य थे जहाँ किसी प्रकार की सुविधा नहीं थी | कारखानों के इर्द-गिर्द मजदूरों की बस्तियाँ बस गई | यहाँ ये छोटे-छोटे घर या झोपड़पट्टी बनाकर रहने लगे | ये बस्तियाँ गंदी तथा अस्वास्थ्यकर होती थीं | मजदूर इसमें नारकीय जीवन बिताते थे |

श्रमिक वर्ग एवं श्रमिक आंदोलन–

1881 में उनकी माँगों के आधार पर पहला “फैक्ट्री एक्ट” पारित हुआ | जिसमें 7 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखाना में काम करने पर रोक लगाया गया| 12 वर्ष से कम आयु के बच्चे काम कर सकते थे पर उनके काम का घटा तय की गयी |

31 अक्टूबर, 1920 ई० को अखिल भारतीय ट्रेड युनियन कांग्रेस (AITUC) की स्थापना हुई | लाला लाजपत राय को उसका प्रधान बनाया गया | 1920 में ही अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ (ILO) राष्ट्रसंघ के तत्त्वाधान में गठित हुआ |

मैनचेस्टर के आगमन से भारतीय बुनकरों के सामने आई समस्याएं :-

उन्नीसवीं सदी की शुरुआत से ही भारत से कपड़ों के निर्यात में कमी आने लगी । 1811 – 12 में भारत से होने वाले निर्यात में सूती कपड़े की हिस्सेदारी 33% थी जो 1850 – 51 आते आते मात्र 3% रह गई ।

अठारहवीं सदी के अंत तक भारत में सूती कपड़ों का आयात न के बराबर था । लेकिन 1850 आते-आते कुल आयात में 31% हिस्सा सूती कपड़े का था । 1870 के दशक तक यह हिस्सेदारी बढ़कर 50% से ऊपर चली गई ।

19 वीं सदी के आते आते बुनकरों के सामने नई समस्याओं का जन्म हुआ ।

भारतीय बुनकरों की समस्याएँ :-

नियति बाजार का ढह जाना ,
स्थानीय बाजार का संकुचित हो जाना ,
अच्छी कपास का ना मिल पाना ,
ऊँची कीमत पर कपास खरीदने के लिए मजबूर होना ।
19 वीं सदी के अंत तक भारत में फैक्ट्रियों द्वारा उत्पादन शुरू तथा भारतीय बाजार में मशीनी उत्पाद की बाढ़ आई ।

फैक्ट्रियों का आना: 

भारत में कारखानों की शुरुआत :-

बम्बई में पहला सूती कपड़ा मिल 1854 में बना और उसमें उत्पादन दो वर्षों के बाद शुरु हो गया । 1862 तक चार मिल चालू हो गये थे ।

उसी दौरान बंगाल में जूट मिल भी खुल गये ।
कानपुर में 1860 के दशक में एल्गिन मिल की शुरुआत हुई ।
अहमदाबाद में भी इसी अवधि में पहला सूती मिल चालू हुआ ।
मद्रास के पहले सूती मिल में 1874 में उत्पादन शुरु हो चुका था ।

19 वीं सदी में भारतीय मजदूरों की दशा :-

1901 में भारतीय फैक्ट्रियों में 5,84,000 मजदूर काम करते थे ।
1946 क यह संख्या बढ़कर 24,36,000 हो चुकी थी ।
ज्यादातर मजदूर अस्थायी तौर पर रखे जाते थे ।
फसलों की कटाई के समय गाँव लोट जाते थे ।
नौकरी मिलना कठिन था ।
जॉबर मजदूरों की जिंदगी को पूरी तरह से नियंत्रित करते थे ।

औद्योगिक विकास का अनूठापन :-

भारत में औद्योगिक उत्पादन पर वर्चस्व रखने वाले यूरोपीय प्रबंधकीय एजेंसियों की कुछ खास तरह के उत्पादन में ही दिलचस्पी थी खासतौर पर उन चीजों में जो निर्यात की जा सकें , भारत में बेचने के लिए जैसे- चाय , कॉफी , नील , जूट , खनन उत्पाद ।

भारतीय व्यवसायियों ने वे उद्योग लगाए ( 19 वीं सदी के आखिर में ) जो मेनचेस्टर उत्पाद से प्रतिस्पर्धा नहीं करते थे । उदाहरण के लिए धागा – जो कि आयात नहीं किया जाता था तो कपड़े की बजाय धागे का उत्पादन किया गया ।

20 वीं सदी के पहले दशक में भारत में औद्योगिकरण का ढर्रा बदल गया । स्वदेशी आंदोलन लोगों को विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए प्रेरित किया । इस वजह से भारत में कपड़ा उत्पादन शुरू हुआ । आगे चलकर चीन को धागे का निर्यात घट गया इस वजह से भी धागा उत्पादक कपड़ा बनाने लगे । 1900 – 1912 के बीच सूती कपड़े का उत्पादन दुगुना हो गया।

लघु उद्योगों की बहुतायत :-

उद्योग में वृद्धि के बावजूद अर्थव्यवस्था में बड़े उद्योगों का शेअर बहुत कम था । लगभग 67% बड़े उद्योग बंगाल और बम्बई में थे ।

देश के बाकी हिस्सों में लघु उद्योग का बोलबाला था । कामगारों का एक बहुत छोटा हिस्सा ही रजिस्टर्ड कम्पनियों में काम करता था । 1911 में यह शेअर 5% था और 1931 में 10%।

1941 आते आते भारत के 35% से अधिक हथकरघों में फ्लाई शटल लग चुका था । त्रावणकोर, मद्रास, मैसूर, कोचिन और बंगाल जैसे मुख्य क्षेत्रों में तो 70 से 80% हथकरघों में फ्लाई शटल लगे हुए थे

वस्तुओं के लिए बाज़ार :-

ग्राहकों को रिझाने के लिए उत्पादक कई तरीके अपनाते थे । ग्राहक को आकर्षित करने के लिए विज्ञापन एक जाना माना तरीका है ।

मैनचेस्टर के उत्पादक अपने लेबल पर उत्पादन का स्थान जरूर दिखाते थे । ‘मेड इन मैनचेस्टर’ का लबेल क्वालिटी का प्रतीक माना जाता था । इन लेबल पर सुंदर चित्र भी होते थे । इन चित्रों में अक्सर भारतीय देवी देवताओं की तस्वीर होती थी । स्थानीय लोगों से तारतम्य बनाने का यह एक अच्छा तरीका था ।

उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध तक उत्पादकों ने अपने उत्पादों को मशहूर बनाने के लिए कैलेंडर बाँटने भी शुरु कर दिये थे । किसी अखबार या पत्रिका की तुलना में एक कैलेंडर की शेल्फ लाइफ लंबी होती है । यह पूरे साल तक ब्रांड रिमाइंडर का काम करता था ।


Class 10 History Chapter 4  Important Question Answer

class 10 History Chapter 4 long question answer, History Chapter 4 class 10 subjective question answer in Hindi


01. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी वस्त्रों की नियमित आपूर्ति कैसे प्राप्त की?

उत्तर ⇒ (i) एकाधिकार अधिकार: एक बार ईस्ट इंडिया कंपनी ने राजनीतिक शक्ति स्थापित कर ली, उसने व्यापार पर एकाधिकार अधिकार का दावा किया। लागत, और कपास और रेशम के सामानों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करना। यह इसने चरणों की एक श्रृंखला के माध्यम से किया।

(iii) गुमाश्तों की नियुक्ति: कंपनी ने मौजूदा व्यापारियों और दलालों को खत्म करने की कोशिश की, जो व्यापार से जुड़े थे, और बुनकरों पर अधिक प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित किया। इसने बुनकरों की निगरानी करने, आपूर्ति एकत्र करने और कपड़े की गुणवत्ता की जांच करने के लिए गोमोस्ता नामक एक वेतनभोगी नियुक्त किया।

(iv) पेशगी की व्यवस्था : बुनकरों पर सीधा नियंत्रण रखने के लिए कम्पनी ने पेशगी की व्यवस्था शुरू की। एक बार आदेश दिए जाने के बाद, बुनकरों को उनके उत्पादन के लिए कच्चा माल खरीदने के लिए ऋण दिया गया। जिन लोगों ने ऋण लिया था, उन्हें अपने द्वारा उत्पादित डोथ को गुमास्ता को सौंपना पड़ता था। वे इसे किसी अन्य व्यापारी के पास नहीं ले जा सकते थे।

(v) शक्ति का प्रयोग : जिन स्थानों पर जुलाहे ने सहयोग करने से मना कर दिया वहाँ कम्पनी ने अपनी पुलिस का प्रयोग किया। आपूर्ति में देरी के लिए कई जगहों पर बुनकरों को अक्सर पीटा जाता था और कोड़े मारे जाते थे।

02. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत में औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा? [CBSE 2011]

उत्तर ⇒ (i) मैनचेस्टर का पतन: ब्रिटिश मिलें सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए युद्ध उत्पादन में व्यस्त थीं। भारत में मैनचेस्टर के आयात में गिरावट आई।

(ii) मांग में वृद्धि : आयात में अचानक कमी आने से। भारतीय मिलों के पास आपूर्ति करने के लिए एक विशाल घरेलू बाजार था।

(iii) सेना की माँग : जैसे-जैसे युद्ध लम्बा होता गया। युद्ध की जरूरत की आपूर्ति के लिए भारतीय कारखानों को बुलाया गया; यानी। जूट के बैग, सेना की वर्दी, टेंट और चमड़े के जूते, घोड़े और खच्चर की काठी, और अन्य वस्तुओं के लिए काम करते हैं।

(iv) नए कारखाने : नए कारखाने स्थापित किए गए। और पुराने वाले कई पारियों में चलते थे। कई नए श्रमिकों को नियुक्त किया गया था, और सभी को लंबे समय तक काम करने के लिए मजबूर किया गया था। युद्ध के वर्षों में, औद्योगिक उत्पादन में उछाल आया।

(v) ब्रिटिश उद्योग का पतन और घरेलू उद्योग के लिए वरदान: युद्ध के बाद मैनचेस्टर भारतीय बाजार में अपनी पुरानी स्थिति को फिर से प्राप्त नहीं कर सका। अमेरिका के साथ आधुनिकीकरण और प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ। जर्मनी और जापान, ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था युद्ध के बाद चरमरा गई। कपास का उत्पादन गिर गया और ब्रिटेन से सूती कपड़े का निर्यात नाटकीय रूप से गिर गया। उपनिवेशों के भीतर, स्थानीय उद्योगपतियों ने धीरे-धीरे अपनी स्थिति को मजबूत किया, विदेशी निर्माणों को प्रतिस्थापित किया और घरेलू बाजार पर कब्जा कर लिया।

03. प्रथम विश्व युद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा ?

अथवा,

स्पष्ट करें कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत के औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि क्यों हुई?

उत्तर ⇒ पहले विश्व युद्ध के दौरान एक नई स्थिति पैदा हो गई थी।

(क) ब्रिटिश कारखाने सेना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए युद्ध सामग्री का उत्पादन करने लगे थे। इसलिए भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया और भारतीय उद्योगों को रातों-रात एक विशाल देशी बाज़ार मिल गया।

(ख) युद्ध लंबा खिंच जाने के कारण भारतीय कारखानों में भी सेना के लिए जूट की बोरियाँ, वर्दी के कपड़े, टेंट और चमड़े के जूते, घोड़े तथा खच्चर की जीन आदि सामान बनने लगे। इसके लिए नए कारखाने भी लगाए गए।

(ग) पुराने कारखाने कई-कई शिफ्टों में चलने लगे। अनेक मज़दूरों को काम पर रखा गया। प्रत्येक मज़दूर को अब पहले से भी अधिक समय तक काम करना पड़ता था। फलस्वरूप युद्ध के दौरान औद्योगिक उत्पादन तेजी से बढ़ा।

NCERT and BSEB class 10 history chapter 4 most important subjective notes in Hindi  

04. विश्व बाजार की क्या उपयोगिता है ? इससे क्या हानियाँ हुई है ?

उत्तर ⇒ आर्थिक गतिविधियों के कार्यान्वयन में विश्व बाजार की महत्त्वपूर्ण उपयोगिता है। विश्व बाजार व्यापारियों, पूँजीपतियों, किसानों, श्रमिकों, मध्यम वर्ग तथा सामान्य उपभोक्ता वर्ग के हितों की सरक्षा करता है। विश्व बाजार का विकास होने से किसान अपने उत्पाद दूर-दूर के स्थानों और देशों में व्यापारियों के माध्यम से बेचकर अधिक धन प्राप्त करते हैं। कुशल श्रमिकों को विश्वस्तर पर पहचान और आर्थिक लाभ इसी बाजार से मिलता है। वैश्विक बाजार में नएं रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं।

विश्व बाजार से हानियाँ – विश्व बाजार से जहाँ अनेक लाभ हुए, वहीं इससे अनेक नुकसानदेह परिणाम भी हुए। विश्व बाजार ने यूरोप में संपन्नता ला दी, लेकिन इसके साथ-साथ एशिया और अफ्रीका में साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का नया युग आरंभ हुआ। औपनिवेशिक शक्तियों ने उपनिवेशों का आर्थिक शोषण बढ़ा दिया। भारत भी उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद का शिकार बना। सरकार ने ऐसी नीति बनायी जिससे यहाँ के कुटीर उद्योग नष्ट हो गए।

वैश्विक बाजार का एक दुष्परिणाम यह हुआ कि औपनिवेशिक देशों में रोजगार छिनने और खाद्यान्न के उत्पादन में कमी आने से गरीबी, अकाल और भूखमरी बढ़ गयी। विश्व बाजार के विकास से यूरोपीय राष्ट्रों में साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा भी बढ़ी। इससे उग्र राष्ट्रवादी भावना का विकास हुआ।

05. आधुनिक ग में विश्व अर्थव्यवस्था तथा विश्व बाजार के प्रभावों को स्पष्ट करें।

उत्तर ⇒ आधुनिक युग में अर्थव्यवस्था के अंतर्गत विश्व अर्थतंत्र और विश्व बाजार ने आर्थिक के साथ-साथ राजनैतिक जीवन को भी गहराई से प्रभावित किया है। 1919 के बाद विश्वव्यापी अर्थतंत्र में यूरोप के स्थान पर संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस का प्रभाव बढ़ा जो द्वितीय महायुद्ध के बाद विश्व व्यापार और राजनैतिक व्यवस्था में निर्णायक हो गया। 1991 के बाद विश्व बाजार के अंतर्गत एक नवीन आर्थिक प्रवृत्ति भूमंडलीकरण का उत्कर्ष हुआ जो निजीकरण और आर्थिक उदारीकरण से प्रत्यक्षतः जुड़ा था।

भूमंडलीकरण ने संपूर्ण विश्व के अर्थतंत्र का केंद्र बिंदु संयुक्त राज्य अमेरिका को बना दिया। उसकी मुद्रा डॉलर पूरे विश्व की मानक मुद्रा बन गई। उसकी कंपनियों को पूरी दुनिया में कार्य करने की अनमति मिल गई अर्थात् भूमंडलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण ने अमेरिका केंद्रित अर्थव्यवस्था को जन्म दिया। आज विश्व एकध्रुवीय स्वरूप में बदलकर प्रभावशाली देश संयुक्त राज्य अमेरिका के आर्थिक नीतियों के हिसाब से चल रहा है। आर्थिक क्षेत्र में भूमंडलीकरण ने अमेरिका के नवीन आर्थिक साम्राज्यवाद को जन्म दिया। इसका असर आज संपूर्ण विश्व में महसूस किया जा रहा है।

 06. उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों की अपेक्षा हाथ से किए जाने वाले श्रम को क्यों तरजीह देते थे? [CBSE 2010, 2011]

उत्तर ⇒ (i) महंगी नई तकनीकः नई तकनीकें और मशीनें महंगी थीं, इसलिए निर्माता और उद्योगपति उनका उपयोग करने में सतर्क थे।

(ii) महंगा मरम्मत: मशीनें अक्सर खराब हो जाती हैं और मरम्मत महंगी होती है।

(iii) कम प्रभावी: वे उतने प्रभावी नहीं थे जितना कि उनके आविष्कारक और निर्माता दावा करते थे।

(iv) सस्ते श्रमिकों की उपलब्धताः गरीब किसान और प्रवासी रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में शहरों की ओर चले गए। इसलिए श्रमिकों की आपूर्ति मांग से अधिक थी। इसलिए, श्रमिक कम मजदूरी पर उपलब्ध थे।

(v) एकसमान मशीन-निर्मित वस्तुएँ: केवल हाथ के श्रम से ही अनेक प्रकार के उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं। मशीनें बड़े पैमाने पर बाजार के लिए वर्दी, मानकीकृत सामान बनाने के लिए उन्मुख थीं। लेकिन बाजार में अक्सर जटिल डिजाइन और विशिष्ट आकार वाले सामानों की मांग रहती थी।

उन्नीसवीं सदी के मध्य में। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन। हथौड़ों की 500 किस्मों और 15 प्रकार की कुल्हाड़ियों का उत्पादन किया गया। इसके लिए मानव कौशल की आवश्यकता थी, यांत्रिक प्रौद्योगिकी की नहीं।

07. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत में औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा? [CBSE 2011]

उत्तर ⇒ (i) मैनचेस्टर का पतन: ब्रिटिश मिलें सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए युद्ध उत्पादन में व्यस्त थीं। भारत में मैनचेस्टर के आयात में गिरावट आई।

(ii) मांग में वृद्धि : आयात में अचानक कमी आने से। भारतीय मिलों के पास आपूर्ति करने के लिए एक विशाल घरेलू बाजार था।

(iii) सेना की माँग : जैसे-जैसे युद्ध लम्बा होता गया। युद्ध की जरूरत की आपूर्ति के लिए भारतीय कारखानों को बुलाया गया; यानी। जूट के बैग, सेना की वर्दी, टेंट और चमड़े के जूते, घोड़े और खच्चर की काठी, और अन्य वस्तुओं के लिए काम करते हैं।

(iv) नए कारखाने : नए कारखाने स्थापित किए गए। और पुराने वाले कई पारियों में चलते थे। कई नए श्रमिकों को नियुक्त किया गया था, और सभी को लंबे समय तक काम करने के लिए मजबूर किया गया था। युद्ध के वर्षों में, औद्योगिक उत्पादन में उछाल आया।

(v) ब्रिटिश उद्योग का पतन और घरेलू उद्योग के लिए वरदान: युद्ध के बाद मैनचेस्टर भारतीय बाजार में अपनी पुरानी स्थिति को फिर से प्राप्त नहीं कर सका। अमेरिका के साथ आधुनिकीकरण और प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ। जर्मनी और जापान, ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था युद्ध के बाद चरमरा गई। कपास का उत्पादन गिर गया और ब्रिटेन से सूती कपड़े का निर्यात नाटकीय रूप से गिर गया। उपनिवेशों के भीतर, स्थानीय उद्योगपतियों ने धीरे-धीरे अपनी स्थिति को मजबूत किया, विदेशी निर्माणों को प्रतिस्थापित किया और घरेलू बाजार पर कब्जा कर लिया।


Class 10 History Chapter 4 Important Objective Question Answer (MCQ)

class 10 History Chapter 4 objective question answer, History Chapter 4 class 10 MCQ in Hindi


1. आधुनिक विश्व द्वारा तकनीकी परिवर्तन क्या है ?

    1. नया अधिकार
    2. कारखाने
    3. मशीने
    4. उपरोक्त सभी

Ans-  D

2. महामंदी के कौन-कौन से कारण है ?

    1. कृषि क्षेत्र में अति उत्पादन
    2. गिरती कीमतें
    3. कम आय
    4. उपरोक्त सभी

Ans-  D

3. देश में तैयार माल को विकसित देश के बाजारों में पहुँचाने में किस प्रकार की सहायता प्रदान की जाती है ?

    1. आर्थिक विकास
    2. कच्चा माल
    3. क और ख दोनों
    4. अनुचित दाम

Ans-  C

4. औद्योगिकीकरण से लोगों की जिन्दगी पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

    1. फैक्ट्रियों की स्थापना
    2. अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार
    3. राष्ट्रीय उपकरण
    4. क और ख दोनों

Ans-  D

5. औद्योगीकीकरण से क्या दुष्प्रभाव पड़े ?

    1. पर्यावरण
    2. बिमारियों
    3. आणविक हथियार में वृद्धि
    4. उपरोक्त सभी

Ans-  D

6. कारखानों का उदय कौन-से सन् में हुआ ?

    1. 1830
    2. 1850
    3. 1730
    4. 1750

Ans-  C

Class 10 history chapter 4 most important mcq notes in hindi 

7. ऊन के उद्योग के लिए किस मशीन का इस्तेमाल किया जाने लगा ?

    1. स्पिनिंग जेनी मशीन
    2. हाथ की मशीन
    3. क और ख दोनों
    4. इनमे से कोई नही

Ans-  A

8. निम्नलिखित में से कौन-सी एक यूरोपीय प्रबंध एजेंसी थी?

    1.  टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी
    2.  एंड्रयू यूल
    3.  एल्गिन मिल
    4.  बिड़ला उद्योग

Ans- B

9. आढ़तियों का मुख्य कार्य था

    1.  उद्योगपतियों के लिए रोजगार सृजित करना।
    2.  उद्योगपतियों के लिए नई भर्ती प्राप्त करें।
    3.  बिचौलिए को कंपनी के लिए कारीगर लाने में मदद करना।
    4.  बुनकरों से संबंधित मुद्दों पर कंपनी को सलाह देना।

Ans- B

10. निम्नलिखित में से किस नवाचार ने बुनकरों को उत्पादकता बढ़ाने और मिल क्षेत्र के साथ प्रतिस्पर्धा करने में मदद की?

    1.  स्पिनिंग जेनी
    2.  फ्लाइंग शटल
    3.  कॉटन जिन
    4.  रोलर

Ans- B

11. ओद्योगिक परिवर्तन की रफ्तार की प्रक्रिया किस प्रकार तेजी से बढ़ रही थी ?

    1. कपास उद्योग द्वारा
    2. स्टील उद्योग द्वारा
    3. लौहा उद्योग द्वारा
    4. उपरोक्त सभी

Ans-  D

NCERT class 10 history chapter 4 most objective solution 

12. 1873 तक ब्रिटेन में स्टील और लौहे निर्यात का मूल्य कितना बढ़ गया था ?

    1. 8.8 करोड़ पौंड
    2. 9.9 करोड़ पौंड
    3. 7.7 करोड़ पौंड
    4. 10.09 करोड़ पौंड

Ans-  C

13. 1830 के दशक में सूती कपड़े की फक्ट्रियों में किस प्रकार कार्य किया जाता था ?

    1. भाप की ताकत से
    2. विशालकाए पहिय द्वारा
    3. क और ख दोनों
    4. इनमेंं से कोई नही

Ans-  C

14. भाप इंजन में किसके द्वारा सुधार किए गए थे ?

    1. जेम्स वॉट
    2. फैट्रिक
    3. फुलर्ज
    4. जेम्स मिल

Ans-  A

15. इंजन को पेटेंट किस सन् में किया गया था ?

    1. 1831
    2. 1840
    3. 1860
    4. 1871

Ans-  D

16. प्रथम भारतीय जूट मिल कहाँ स्थापित की गई थी? [CBSE 2011]

    1.  बंगाल
    2.  बॉम्बे
    3.  मद्रास
    4.  बिहार

Ans-  A

Bihar board class 10 history chapter 4 important mcq notes and solution 

17.  1911 में, भारत में निम्नलिखित में से किस स्थान पर 67 प्रतिशत बड़े उद्योग स्थित थे? [CBSE 2011]

    1.  बंगाल और बॉम्बे
    2.  सूरत और अहमदाबाद
    3.  दिल्ली और बॉम्बे
    4.  पटना और लखनऊ

Ans-  A

18. ब्रिटिश सरकार ने बुनकरों की आपूर्ति की निगरानी और कपड़े की गुणवत्ता की जांच करने के लिए किसे नियुक्त किया था?[CBSE 2011]

    1.  जॉबर
    2.  सिपाही
    3.  पुलिसकर्मी
    4.  गुमास्ता

Ans-  D

19. निम्नलिखित विकल्पों में से विषम को काट दें। यूरोपीय प्रबंध कंपनियां निवेश करने में रुचि रखती थीं

    1.  खनन
    2.  चावल उत्पादन
    3.  जूट
    4.  इंडिगो

Ans-  B

20. निम्नलिखित में से किस व्यापार से शुरुआती उद्यमियों ने भाग्य बनाया?

    1.  कपड़ा व्यापार
    2.  चीन व्यापार
    3.  चाय में व्यापार
    4.  उद्योग

Ans-  B 

Next Chapter Next Subjects 

class 10 History search topic covered

class 10 History Chapter 4 question answer, class 10 History Chapter 4 pdf, class 10 History Chapter 4 exercise, class 10 History Chapter 4 question answer in Hindi, class 10 History Chapter 4 notes, class 10 History Chapter 4 in Hindi, class 10 History Chapter 4 mcq, class 10 History Chapter 4 extra questions

Bihar board class 10 History notes Chapter 4, disha online classes History notes Chapter 4, History question answer Chapter 4 class 10, Class 10 notes Era of Industrialization, इतिहास कक्षा 10 नोट्स अध्याय 4 , चैप्टर ४  इतिहास का नोट्स कक्षा 10 , कक्षा 10 इतिहास अध्याय 4 नोट्स PDF | कक्षा 10 इतिहास नोट्स PDF, कक्षा 10 NCERT इतिहास अध्याय 4 नोट्स, कक्षा 10 इतिहास नोट्स 2023 PDF download, कक्षा 10 इतिहास अध्याय 4 नोट्स 2022, कक्षा 10 इतिहास नोट्स 2023, कक्षा 10 इतिहास अध्याय 4 नोट्स up Board

Leave a Comment