Class 10 History Chapter 2 Notes in Hindi | भारत में राष्ट्रवाद

Class 10 History Chapter 2 Notes in Hindi: covered History Chapter 2 easy language with full details & concept  इस अध्याय में हमलोग जानेंगे कि – भारत में राष्ट्रवाद का उदय (Rise of Nationalism in India), राष्ट्रवाद का अर्थ (meaning of nationalism,), राष्ट्रवाद को जन्म देने वाले कारक (factors leading to nationalism), भारत में राष्ट्रवाद की चेतना का उदय (Rise of Nationalism in India), पहला विश्वयुद्ध, खिलाफत और सहयोग, सत्याग्रह का अर्थ (Meaning of Satyagraha), रॉलट ऐक्ट अन्यायपूर्ण क्यों था (Why was the Rowlatt Act unjust?), रॉलट ऐक्ट के परिणाम, जलियावाला बाग हत्याकांड की घटना, खेड़ा किसान आन्दोलन, महात्मा गांधी ने क्यों खिलाफत का मुद्दा उठाया (Why Mahatma Gandhi raised the issue of Khilafat), असहयोग ही क्यों? (Why non-cooperation?), असहयोग आंदोलन के कारण, चौरी चौरा हत्याकांड की घटना, सविनय अवज्ञा आंदोलन, स्वराज पार्टी (Swaraj Party), साइमन कमीशन, नमक यात्रा और असहयोग आंदोलन (1930){Salt March and Non-Cooperation Movement (1930)}, गाँधी इर्विन समझौते की विशेषताएँ, सविनय अवज्ञा आंदोलन में महिलाओं की भूमिका (Role of women in civil disobedience movement), दाण्डी यात्रा (12 मार्च 1930), राष्ट्रवादी भावना के विस्तार में इतिहास की भूमिका? 

Class 10 History Chapter 2 Notes in Hindi full details

category  Class 10 History Notes in Hindi
subjects  History
Chapter Name Class 10 Nationalism in India (भारत में राष्ट्रवाद) 
content Class 10 History Chapter 2 Notes in Hindi
class  10th
medium Hindi
Book NCERT
special for Board Exam
type readable and PDF

NCERT class 10 History Chapter 2 notes in Hindi

इतिहास अध्याय 3 सभी महत्पूर्ण टॉपिक तथा उस से सम्बंधित बातों का चर्चा करेंगे।


विषय – इतिहास   अध्याय – 3

भारत में राष्ट्रवाद

Nationalism in India 


परिचय (Introduction) -: 

भारत में राष्ट्रवाद:- 

यूरोप में आधुनिक राष्ट्रवाद के साथ ही राष्ट्र-राज्यों का भी उदय हुआ। इससे अपने बारे में लोगों की समझ बदलने लगी। वे कौन है? उनकी पहचान किस बात से परिभाषित होती हैं, यह भावना बदल गई। उनमें राष्ट्र के प्रति लगाव का भाव पैदा होने लगा।

नए प्रतीको और चिन्हों ने, नए गीतों और विचारों ने नए संपर्क स्थापित किए और समुदायों की सीमओं को दोबारा परिभाषित कर दिया अधिकांश देशों में इन नयी राष्ट्रीय पहचान का निर्माण एक लंबी प्रक्रिया में हुआ।

राष्ट्रवाद का अर्थ :-

अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना एकता की भावना तथा एक समान चेतना राष्ट्रवाद कहलाती है । यह लोग समान ऐतिहासिक , राजनीतिक तथा सांस्कृतिक विरासत साझा करते है । कई बार लोग विभिन्न भाषाई समूह के हो सकते है ( जैसे भारत ) लेकिन राष्ट्र के प्रति प्रेम उन्हें एक सूत्र में बांधे रखता है ।

राष्ट्रवाद को जन्म देने वाले कारक :-

यूरोप में :- राष्ट्र राज्यों के उदय से जुड़ा हुआ है । भारत , वियतनाम जैसे उपनिवेशों में :- उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ा है ।

भारत में राष्ट्रवाद की चेतना का उदय:- 

वियतनाम और दूसरे उपनिवेशों की तरह भारत में भी आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय की परिघटना उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन के साथ गहरे तौर पर जुड़ी हुई।

औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ संघर्ष के दौरान लोग आपसी एकता को पहचानने लगे थे। उत्पीड़न और दमन के साझा भाव ने विभिन्न समूहों को एक-दूसरे से बाँध दिया था। लेकिन हर वर्ग और समूह पर उपनिवेशवाद का असर एक जैसा नहीं था।

उनके अनुभव भी अलग थे और स्वतंत्रता के मायने भी भिन्न थे। महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने इन समूहों को इकट्‌ठा करके एक विशाल आंदोलन खड़ा किया। परंतु इस एकता में टकराव के बिंदु भी निहित थे।

प्रथम विश्वयुद्ध का भारत पर प्रभाव तथा युद्ध पश्चात परिस्थितियाँ :-

युद्ध के कारण रक्षा संबंधी खर्चे में बढ़ोतरी हुई थी ।

इसे पूरा करने के लिए कर्जे लिये गए और टैक्स बढ़ाए गए ।

अतिरिक्त राजस्व जुटाने के लिए कस्टम ड्यूटी और इनकम टैक्स को बढ़ाना पड़ा ।

युद्ध के वर्षों में चीजों की कीमतें बढ़ गईं ।

1913 से 1918 के बीच दाम दोगुने हो गए ।

दाम बढ़ने से आम आदमी को अत्यधिक परेशानी हुई ।

ग्रामीण इलाकों से लोगों को जबरन सेना में भर्ती किए जाने से भी लोगों में बहुत गुस्सा था ।

भारत के कई भागों में उपज खराब होने के कारण भोजन की कमी हो गई ।

फ़्लू की महामारी ने समस्या को और गंभीर कर दिया ।

1921 की जनगणना के अनुसार , अकाल और महामारी के कारण 120 लाख से 130 लाख तक लोग मारे गए  ।

पहला विश्वयुद्ध, खिलाफत और सहयोग:- 

1919 के बाद राष्ट्रीय आंदोलन नए इलाकों तक फैल गया था।

उसमें नए सामाजिक समूह शामिल हो गए थे और संघर्ष की नयी पद्धतियों सामने आ रही थी।

इन बदलावों को हम कैसे समझेंगे? उनके क्या परिणाम हुए?

विश्वयुद्ध ने एक नयी आर्थिक और राजनैतिक स्थिति पैदा कर दी थी। इसके कारण रक्षा व्यय में भारी इजाफ़ा हुआ।

इस खर्चे की भरपाई करने के लिए युद्ध के नाम पर क़र्ज लिए गए और करों में वृद्धि की गई।

सीमा शुल्क बढ़ा दिया गया और आयकर शुरू किया गया।

युद्ध के दौरान कीमतें तेजी से बढ़ रही थी

1913 से 1918 के बीच कीमतें दोगुना हो चुकी थी जिसके कारण आम लोगों की मुश्किलें बढ़ गई थीं।

गाँवों में सिपाहियों को जबरन भर्ती किया जाने लगा जिसके कारण ग्रामीण इलाकों में व्यापक गुस्सा था।

1918-19 और 1920-21 में देश के बहुत सारे हिस्सों में फसल खराब हो गई। जिसके कारण खाद्य पदार्थों का भारी अभाव पैदा हो गया।
उसी समस फ्लू की महामारी फैल गई। 1921 की जनगणना के मुताबिक दुर्भिक्ष और महामारी के कारण 120-130 लाख लोग मारे गए।
लोगों को उम्मीद थी कि युद्ध खत्म होने के बाद उनकी मुसीबतें कम हो जाएँगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

सत्याग्रह का अर्थ :-

यह सत्य तथा अहिंसा पर आधारित एक नए तरह का जन आंदोलन करने का रास्ता था ।

महात्मा गाँधी का भारत आगमन व सत्याग्रह का विचार

महात्मा गांधी जनवरी 1915 में भारत लौटे। इससे पहले वे दक्षिण अफ्रीका में थे।

उन्होनें एक नए तरह के जनांदोलन के रास्ते पर चलते हुए वहाँ की नस्लभेदी सरकार से सफलतापूर्वक लोहा लिया था।

इस पद्धति को वे सत्याग्रह कहते थे। सत्याग्रह के विचार से सत्य की  शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर जोद दिया जाता था।

इस संघर्ष में अतत: सत्य की ही जीत होती है।

गांधीजी का विश्वास था की अहिंसा का यह धर्म सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है।

1917 में खेड़ा गुजरात किसानों को कर में छूट दिलवाने के लिए उनके संघर्ष में समर्थन दिया फसल खराब हो जाने व प्लेग महामारी के कारण किसान लगान चुकाने की हालत में नहीं थे । अहमदाबाद ( गुजरात ) 1918 में कपड़ा कारखाने में काम करने वाले मजदूरों के समर्थन में सत्याग्रह आंदोलन किया ।

महात्मा गांधी के सत्याग्रह का अर्थ :-

सत्याग्रह ने सत्य पर बल दिया। गांधीजी का मानना था कि यदि कोई सही मकसद के लिए लड़ रहा हो तो उसे अपने ऊपर अत्याचार करने वाले से लड़ने के लिए ताकत की जरूरत नहीं होती है। अहिंसा के माध्यम से एक सत्याग्रही लड़ाई जीत सकता है ।

रॉलट ऐक्ट 1919 :-

राजनीतिक कैदियों को बिना मुकदमा चलाए दो साल तक जेल में बंद रखने का प्रावधान ।

रॉलट ऐक्ट का उद्देश्य :-

भारत में राजनीतिक गतिविधियों का दमन करने के लिए ।

रॉलट ऐक्ट अन्यायपूर्ण क्यों था :-

भारतीयों की नागरिक आजादी पर प्रहार किया ।
भारतीय सदस्यों की सहमति के बगैर पास किया गया ।

रॉलट ऐक्ट के परिणाम :-

6 अप्रैल को महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक अखिल भारतीय हड़ताल का आयोजन ।

विभिन्न शहरों में रैली , जूलूस हुए ।

रेलवे वर्कशॉप्स में कामगारों का हड़ताल हुई ।

दुकाने बंद हो गई ।

स्थानीय नेताओं को हिरासत में ले लिया गया ।

बैंकों , डाकखानों और रेलवे स्टेशन पर हमले हुए ।

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जलियावाला बाग हत्याकांड की घटना  :-

10 अप्रैल 1919 को अमृतसर में पुलिस ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई । इसके कारण लोगों ने जगह – जगह पर सरकारी संस्थानों पर आक्रमण किया । अमृतसर में मार्शल लॉ लागू हो गया और इसकी कमान जेनरल डायर के हाथों में सौंप दी गई ।

जलियांवाला बाग का दुखद नरसंहार 13 अप्रैल को उस दिन हुआ जिस दिन पंजाब में बैसाखी मनाई जा रही थी । ग्रामीणों का एक जत्था जलियांवाला बाग में लगे एक मेले में शरीक होने आया था । यह बाग चारों तरफ से बंद था और निकलने के रास्ते संकीर्ण थे ।

नोट :- हिंसा फैलते देख महात्मा गांधी ने रॉलट सत्याग्रह वापस ले लिया ।

आंदोलन के विस्तार की आवश्यकता :-

रॉलैट सत्याग्रह मुख्यतया शहरों तक ही सीमित था । महात्मा गांधी को लगा कि भारत में आंदोलन का विस्तार होना चाहिए । उनका मानना था कि ऐसा तभी हो सकता है जब हिंदू और मुसलमान एक मंच पर आ जाएँ ।

चम्पारण आन्दोलन
1917 में उन्होनें बिहार के चंपारन इलाके का दौरा किया और दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ किसानों को संघर्ष के लिए प्रेरित किया।
नील की खेती करने वाले किसानों के पक्ष में महात्मा गांधी का भारत में प्रथम सत्याग्रह किया।
चम्पारण आन्दोलन
1917 में उन्होनें बिहार के चंपारन इलाके का दौरा किया और दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ किसानों को संघर्ष के लिए प्रेरित किया।
नील की खेती करने वाले किसानों के पक्ष में महात्मा गांधी का भारत में प्रथम सत्याग्रह किया।

खेड़ा किसान आन्दोलन:- 

1918 में गाँधीजी ने गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह का आयोजन किया। फसल खराब हो जाने और प्लेग की महामारी के कारण खेड़ा जिले के किसान लगान चुकाने की हालत में नहीं थे। वे चाहते थे कि लगान वसूली में ढील दी जाए।

महात्मा गांधी ने क्यों खिलाफत का मुद्दा उठाया :-

रॉलट सत्याग्रह की असफलता के बाद से ही महात्मा गांधी पूरे भारत में और भी ज्यादा जनाधार वाला आंदालन खड़ा करना चाहते थे। उन्हे विश्वास था कि बिना हिंदू और मुस्लिम को एक दूसरे के समीप लाए ऐसा कोई अखिल भारतीय आंदोलन खड़ा नही किया जा सकता इसलिए उन्होने खिलाफत का मुद्दा उठाया ।

ख़लीफ़ा की तात्कालिक शक्तियों की रक्षा के लिए मार्च 1919 में बंबई में एक खिलाफत समिति का गठन किया गया था।

मोहम्मद अली और शौकत (अली बंधुओं) के साथ-साथ कई युवा मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे पर संयुक्त जनकार्रवाई की संभावना तलाशने के लिए महात्मा गांधी के साथ चर्चा शुरू कर दी थी।

सितंबर 1920 में। कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गांधी ने भी दूसरे नेताओं को इस बात पर राजी कर लिया कि ख़िलाफत आंदोलन के समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग आंदोलन शुरू किया जाना चाहिए।

असहयोग ही क्यों?

गांधी जी की प्रसिद्ध पुस्तक हिंद स्वराज (1909) में महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से ही स्थापित हुआ था और यह शासन इसी सहयोग के कारण चल पा रहा है।

अगर भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें तो साल भर के भीतर ब्रिटिश शासन ढह जाएगा और स्वराज की स्थापना हो जाएगी।

असहयोग आंदोलन के कारण :-

प्रथम महायुद्ध की समाप्ति पर अंग्रेजों द्वारा भारतीय जनता का शोषण ।

अंग्रेजों द्वारा स्वराज प्रदान करने से मुकर जाना ।

रॉलेट एक्ट का पारित होना ।

जलियाँवाला बाग हत्याकांड ।

कलकत्ता अधिवेशन में 1920 में कांग्रेस द्वारा असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव बहुमत से पारित ।

► असहयोग खिलाफत आन्दोलन

असहयोग खिलाफत आंदोलन की शुरुआत जनवरी 1921 में हुई थी ।

अगर सरकार दमन का रास्ता अपनाती है तो व्यापक सविनय अवज्ञा अभियान भी शुरू किया जाए। 1920 की गर्मियों में गांधीजी और शौकत अली आंदोलन के लिए समर्थन जुटाते हुए देश भर में यात्राएँ करते रहे।

प्रत्येक सामाजिक समूह ने आंदोलन में भाग लेते हुए ‘ स्वराज ‘ का मतलब एक ऐसा युग लिया जिसमें उनके सभी कष्ट और सारी मुसीबते खत्म हो जाएंगी ।

1859 के इनलैंड इमिग्रेशन एक्ट के तहत बागानों में काम करने वाले मजदूरों को बिना इजाजत बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी और यह इजाज़त उन्हें कभी कभी ही मिलती थी।

असहयोग आंदोल की समाप्ति :-

फरवरी 1922 में महात्मा गांधी ने आंदोलन वापस ले लिया क्योंकि चौरी चौरा में हिंसक घटना हो गई थी ।

चौरी चौरा हत्याकांड की घटना :-

फरवरी 1922 में , गांधीजी ने नो टैक्स आंदोलन शुरू करने का फैसला किया । बिना किसी उकसावे के प्रदर्शन में भाग ले रहे लोगों पर पुलिस ने गोलियां चला दीं । लोग अपने गुस्से में हिंसक हो गए और पुलिस स्टेशन पर हमला कर दिया और उसमें आग लगा दी । यह घटना उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा में हुई थी ।

सविनय अवज्ञा आंदोलन :-

1921 के अंत आते आते , कई जगहों पर आंदोलन हिंसक होने लगा था । फरवरी 1922 में गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का निर्णय ले लिया । कांग्रेस के कुछ नेता भी जनांदोलन से थक से गए थे और राज्यों के काउंसिल के चुनावों में हिस्सा लेना चाहते थे । राज्य के काउंसिलों का गठन गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट 1919 के तहत हुआ था । कई नेताओं का मानना था सिस्टम का भाग बनकर अंग्रेजी नीतियों विरोध करना भी महत्वपूर्ण था ।

स्वराज पार्टी :- 

सी.आर. दास और मोतीलाल नेहरू ने परिषद् राजनीति में वापस लौटने के लिए कांग्रेस के भीतर ही स्वराज पार्टी का गठन कर डाला।

जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस जैसे युवा नेता ज़्यादा उग्र जनांदोलन और पूर्ण स्वतंत्रता के लिए दबाव बनाए हुए थे।
आंतरिक बहस व असहमति के इस माहौल में दो ऐसे तत्व थे जिन्होंने बीस के दशक के आखिरी सालों में भारतीय राजनीति की रूपरेखा एक बार फिर बदल दी।

आर्थिक मन्दी का असर- 

पहला कारक था विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का असर। 1926 से कृषि उत्पादों की कीमतें गिरने लगी थीं और 1930 के बाद तो पूरी तरह धराशायी हो गई।

कृषि उत्पादों की माँग गिरी और निर्यात कम होने लगा तो किसानों को अपनी उपज बेचना और लगान चुकाना भी भारी पड़ने लगा।
1930 तक ग्रामीण इलाके भारी उथल-पुथल से गुजरने लगे थे।

साइमन कमीशन:-

1927 में ब्रिटेन में साइमन कमिशन का गठन किया गया, ताकि भारत में सवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली का अध्ययन किया जा सके । 1928 में साइमन कमीशन का भारत आना- पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन हुआ । कांग्रेस ने इस आयोग का विरोध किया क्योंकि इसमें एक भी भारतीय शामिल नही था । दिसंबर 1929 में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन हुआ था । इसमें पूर्ण स्वराज के संकल्प को पारित किया गया । 26 जनवरी 1930 को स्वाधीनता दिवस घोषित किया गया और लोगों से आह्वान किया गया कि वे संपूर्ण स्वाधीनता के लिए संघर्ष करें ।

साइमन आयोग में 7 सदस्य थे उनमें से एक भी भारतीय सदस्य नहीं था सारे अंग्रेज़ थे।  1928 में जब साइमन कमीशन भारत पहुँचा तो उसका स्वागत ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ (साइमन कमीशन गो बैक) के नारों से किया गया।

नमक यात्रा और असहयोग आंदोलन (1930) :-

31  जनवरी 1930 में महात्मा गांधी ने लार्ड इरविन के समक्ष अपनी 11 मांगे रखी ।

लार्ड इरविन इनमें से किसी भी माँग को मानने के लिए तैयार नही थे ।

6 अप्रैल 1930 को नमक बनाकर नमक कानून का उल्लंघन यह घटना सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत थी ।

महात्मा गांधी का यह पत्र एक अल्टीमेटम (चेतावनी) की तरह था। उन्होंने  लिखा था कि अगर 11 मार्च तक इनकी माँगें नहीं मानी गई तो

कांग्रेस सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ देगी।

12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी द्वारा नमक यात्रा की शुरूआत ।

गाँधी इर्विन समझौते की विशेषताएँ :-

5 मई 1931 ई . को गाँधी इरविन समझौता ।

सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित कर दिया जाये ।

नमक पर लगाए गए सभी कर हटाए जाएँ ।

कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन व पूर्ण स्वराज की माँग

दिसंबर 1929 में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज’ की माँग को औपचारिक रूप से मान लिया गया।

तय किया गया कि 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाएगा और उस दिन लोग पूर्ण स्वराज के लिए संघर्ष की शपथ लेंगे। इस उत्सव की ओर बहुत कम ही लोगों ने ध्यान दिया।

अब स्वतंत्रता के इस अमूर्त विचार को रोजमर्रा जिन्दगी के ठोस मुद्दों से जोड़ने के लिए महात्मा गांधी को कोई और रास्ता ढूँढ़ना था।

सविनय अवज्ञा आंदोलन में महिलाओं की भूमिका:-

औरतों ने बहुत बड़ी संख्या में गाँधी के नमक सत्याग्रह में भाग लिया ।

हजारों औरतें उनकी बात सुनने के लिए यात्रा के दौरान घरों से बहार आ जाती थीं ।

उन्होंने जलूसों में भाग लिया , नमक बनाया , विदेशी कपड़ों और शराब की दुकानों की पिकेटिंग की ।

कई महिलाएँ जेल भी गईं ।

ग्रामीण क्षेत्रों की औरतों ने राष्ट्र की सेवा को अपना पवित्र दायित्व माना ।

सविनय अवज्ञा आंदोलन कैसे असहयोग आंदोलन से अलग था :-

असहयोग आंदोलन में लक्ष्य ‘ स्वराज ‘ था लेकिन इस बार ‘ पूर्ण स्वराज की मांग थी ।

असहयोग में कानून का उल्लंघन शामिल नही था जबकि इस आंदोलन में कानून तोड़ना शामिल था ।

1932 की पूना संधि के प्रावधान :-

इससे दमित वर्गों (जिन्हें बाद में अनुसूचित जाति के नाम से जाना गया) को प्रांतीय एवं केंद्रीय विधायी परिषदों में आरक्षित सीटें मिल गई हालाँकि उनके लिए मतदान सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों में ही होता था ।

सामूहिक अपनेपन का भाव :-

वे कारक जिन्होने भारतीय लोगों में सामूहिक अपनेपन की भावना को जगाया तथा सभी भारतीय लोगों को एक किया ।

चित्र व प्रतीक :- भारत माता की प्रथम छवि बंकिम चन्द्र द्वारा बनाई गई । इस छवि के माध्यम से राष्ट्र को पहचानने में मदद मिली ।

चिन्ह :- उदाहरण झंडा :- बंगाल में 1905 में स्वदेशी आंदोलन के दौरान सर्वप्रथम एक तिरंगा (हरा, पीला, लाल) जिसमें 8 कमल थे । 1921 तक आते आते महात्मा गांधी ने भी सफेद , हरा और लाल रंग का तिरंगा तैयार कर लिया था ।

इतिहास की पुर्नव्याख्या :- बहुत से भारतीय महसूस करने लगे थे कि राष्ट्र के प्रति गर्व का भाव जगाने के लिए भारतीय इतिहास को अलग ढंग से पढ़ाना चाहिए ताकि भारतीय गर्व का अनुभव कर सकें ।

गीत जैसे वंदे मातरम :- 1870 के दशक में बंकिम चन्द्र ने यह गीत लिखा मातृभूमि की स्तुति के रूप में यह गीत बंगाल के स्वदेशी आंदोलन में खूब गाया गया ।

दाण्डी यात्रा (12 मार्च 1930):- 

इरविन झुकने को तैयार नहीं थे। फलस्वरूप, महात्मा गांधी ने अपने 78 विश्वस्त वॉलंटियरों के साथ नमक यात्रा शुरू कर दी। यह यात्रा साबरमती में गांधीजी के आश्रम से 240 किलोमीटर दूर दांडी नामक गुजराती तटीय कस्बे में जाकर खत्म होनी थी। गांधीजी की टोली ने 24 दिन तक हर रोज़ लगभग 10 मील का सफ़र तय किया।

गांधीजी जहाँ भी रुकते हज़ारों लोग उन्हें सुनने आते। इन सभाओं में गांधीजी ने स्वराज का अर्थ स्पष्ट किया और आह्वान किया कि लोग अंग्रेजों की शांतिपूर्वक अवज्ञा करें यानी अंग्रेज़ों का कहना मानें। 6 अप्रैल को वह दांडी पहुँचे और उन्होंने समुद्र का पानी उबालकर नमक बनाना शुरू कर दिया। यह कानून का उल्लंघन था। यहीं से सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू होता है।

किसानों की आन्दोलन में भूमिका :-

गांवों में संपन्न किसान समुदाय-जैसे गुजरात के पटीदार और उत्तर प्रदेश के जाट-आंदोलन में सक्रिय थे। व्यावसायिक फसलों की खेती करने के कारण व्यापार में मंदो और गिरती कीमतों से वे बहुत परेशान थे। जब उनकी नकद आय खत्म होने लगी तो उनके लिए सरकारी लगान चुकाना नामुमकिन हो गया। सरकार लगान कम करने को तैयार नहीं थी। चारों तरफ असंतोष था।

संपन्न किसानों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का बढ़-चढ़ कर समर्थन किया। उन्होंने अपने समुदायों को एकजुट किया और कई बार अनिच्छुक सदस्यों को बहिष्कार के लिए मजबूर किया। उनके लिए स्वराज की लड़ाई भारी लगान के खिलाफ लड़ाई थी।

लेकिन जब 1931 में लगानों के घटे बिना आंदोलन वापस ले लिया गया तो उन्हें बड़ी निराशा हुई। फलस्वरूप, जब 1932 में आंदोलन दुबारा शुरू हुआ तो उनमें से बहुतों ने उसमें हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। गरीब किसान केवल लगान में कमी नहीं चाहते थे। उनमें से बहुत सारे किसान जमींदारों से पट्टे पर जमीन लेकर खेती कर रहे थे।

महामंदी लंबी खिंची और नकद आमदनी गिरने लगी तो छोटे पट्टेदारों के लिए जमीन का किराया चुकाना भी मुश्किल हो गया। वे चाहते थे कि उन्हें ज़मींदारों को जो भाड़ा चुकाना था उसे माफ़ कर दिया जाए। इसके लिए उन्होंने कई रेडिकल आंदोलनों में हिस्सा लिया जिनका नेतृत्व अकसर समाजवादियों और कम्युनिस्टों के हाथों में होता था। अमीर किसानों और ज़मींदारों की नाराजगी के भय से कांग्रेस ‘भाडा विरोधी’ आंदोलनों को समर्थन देने में प्रायः हिचकिचाती थी। इसी कारण गरीब किसानों और कांग्रेस के बीच संबंध अनिश्चित बने रहे।

महिलाओं की भूमिका:- 

विदेशी कपड़ो व शराब की दुकानों की पिकेटिंग की बहुत सारी महिलाएँ जेल भी गई शहरी इलाकों में ज्यादातर ऊँची जातियों की महिलाएँ आंदोलन में हिस्सा ले रही थीं गांधीजी के आहवान के बाद औरतों को राष्ट्र की सेवा करना अपना पवित्र दायित्व दिखाई देने लगा था| लेकिन सार्वजनिक भूमिका में इस इजाफें का मतलब यह नहीं था लेकिन सार्वजनिक भूमिका बदलाव आने वाला था।

गांधीजी का मानना था कि घर चलाना चूल्हा-चौका सँभालना, अच्छी माँ व अच्छी पत्नी की भूमिकाओं का निर्वाह करना ही औरत का असली कर्त्तव्य है। इसीलिए लंबे समय तक कांग्रेस संगठन में किसी भी महत्वपूर्ण पद पर औरतों को जगह देने से हिचकिचाती रही। कांग्रेस को उनकी प्रतीकात्मक उपस्थिति में ही दिलचस्पी थी।

मुस्लिमों की समस्या:- 

असहयोग – खिलाफत आदोलन के शांत पड़ जाने के बाद मुसलमानों का एक बहुत बड़ा तबका कांग्रेस से कटा हुआ महसूस करने लगा था
1920 के दशक के मध्य से कांग्रेस हिंदू महासभा जैसे हिंदू धार्मिक राष्ट्रवादी संगठनों के काफी करीब दिखने लगी थी।  जैसे-जैसे हिंदू-मुसलमानों के बीच संबंध खराब होते गए, दोनों समुदाय उग्र धार्मिक जुलूस निकालने लगे। इससे कई शहरों में हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक टकराव व दंगे हुए। हर दंगे के साथ दोनों समुदायों के बीच फासला बढ़ता गया।

कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने एक बार फिर गठबंधन का प्रयास किया। 1927 में ऐसा लगा भी कि अब एकता स्थापित हो ही जाएगी। सबसे महत्त्वपूर्ण मतभेद भावी विधान सभाओं में प्रतिनिधित्व के सवाल पर थे। मुस्लिम लीग नेताओं में से एक मोहम्मद अली जिन्ना का कहना था कि अगर मुसलमानों को केंद्रीय सभा में आरक्षित सीटें दी जाएँ और मुस्लिम बहुल प्रातों बगांल और पंजाब में मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचिका के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाए तो वे मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचिक की माँग छोड़ने के लिए तैयार है ।

प्रतिनिधित्व के सवाल पर यह बहस-मुबाहिसा चल ही रहा था कि 1928 में आयोजित किए गए सर्वदलीय सम्मेलन में हिंदू महासभा के एम.आर. जयकर ने इस समझौते के लिए किए जा रहे प्रयासों की खुलेआम निंदा शुरू कर दी जिससे इस मुद्दे के समाधान की सारी संभावनाएँ समाप्त हो गई।

सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ उस समय समुदायों के बीच संदेह और अविश्वास का माहौल बना हुआ था कांग्रेस से कटे हुए मुसलमानों का बड़ा तबका किसी संयुक्त संघर्ष के लिए तैयार नहीं था। बहुत सारे मुस्लिम नेता और बुद्धिजीवी भारत में अल्पसंख्यकों के रूप में मुसलमानों की हैसियत को लेकर चिंता जता रहे थे। उनको भय था कि हिंदू बहुसंख्या के वर्चस्व की स्थिति में अल्पसंख्यकों की संस्कृति और पहचान खो जाएग|

राष्ट्रवादी भावना के विस्तार में इतिहास की भूमिका:- 

इतिहास की पुनर्व्याख्या राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने का एक और साधन थी। उन्नीसवीं सदी के अंत तक आते-आते बहुत सारे भारतीय यह महसूस करने लगे थे कि राष्ट्र के प्रति गर्व का भाव जगाने के लिए भारतीय इतिहास को अलग ढंग से पढ़ाया जाना चाहिए अंग्रेजों की नज़र में भारतीय पिछड़े हुए और आदिम लोग थे जो अपना शासन खुद नहीं सँभाल सकते।

इसके जवाब में भारत के लोग अपनी महान उपलब्धियों की खोज में अतीत की ओर देखने लगे उन्होंने उस गौरवमयी प्राचीन युग के बारे में लिखना शुरू कर दिया।

जब कला और वास्तुशिल्प, विज्ञान और गणित, धर्म और संस्कृति, कानून और दर्शन, हस्तकला और व्यापार फल-फूल रहे थे। उनका कहना था की इस महान युग के बाद पतन का समय आया और भारत को गुलाम बना लिया गया।

इस राष्ट्रवादी इतिहास में पाठकों को अतीत में भारत की महानता व उपलब्धियों पर गर्व करने और ब्रिटिश शासन के तहत दुर्दशा से मुक्ति के लिए संघर्ष का मार्ग अपनाने का आह्वान किया जाता था।

लोगों को एकजुट करने की इन कोशिशों की अपनी समस्याएँ थीं।

जिस अतीत का गौरवगान किया जा रहा था। वह हिंदुओं का अतीत था।

छवियों का सहारा गौरवगान किया जा रहा था वह हिंदुओं का अतीत था।

जिन छवियों का सहारा लिया जा रहा था वे हिंदू प्रतीक थे।

इसलिए अन्य समुदायों के लोग अलग-अलग महसूस करने लगे थे।

भारत में राष्ट्रवाद (समय के अनुसार एक नजर में) :-

1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ ।

1870 बंकिमचंद्र द्वारा वंदेमातरम की रचना हुई ।

1885 में कांग्रेस की स्थापना बम्बई ( मुम्बई ) में हुई । व्योमेश चंद्र बनर्जी कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष बने ।

लार्ड कर्जन ने 1905 में बंगाल के विभाजन का प्रस्ताव किया ।

1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया ।

1906 में आगा खां एवं नवाब सलीमुल्ला ने मुस्लिम लीग की स्थापना की ।

1907 में कांग्रेस का विभाजन नरम दल एवं गरम दल में हुआ ।

1911 में दिल्ली दरबार का आयोजन । दिल्ली दरबार में बंगाल विभाजन को रद्द किया गया । दिल्ली दरबार में राजधानी कोलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित की गई ।

1914 में प्रथम विश्व युद्ध का आरम्भ ।

1915 में महात्मा गाँधी की स्वदेश वापसी ।

1917 में महात्मा गाँधी ने नील कृषि के विरोध में चंपारण में आंदोलन किया ।

1917 में महात्मा गाँधी ने गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों के लिए सत्याग्रह किया ।

1918 में महात्मा गाँधी ने गुजरात के अहमदाबाद में सूती कपड़ा मिल के कारीगरों के लिए सत्याग्रह किया ।

1918 में प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति हुई ।

ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों की स्वशासन की माँग को ठुकरा दिया ।

1919 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों पर रॉलट एक्ट जैसा काला कानून दिया ।

13 अप्रैल 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ ।

1919 में खिलाफत आंदोलन की शुरुआत मुहम्मद अली व शौकत अली ने की ।

महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन की शुरूआत की ।

1922 में चौरी – चौरा में हुई । हिंसक घटना के बाद महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया ।

9 अगस्त 1925 को काकोरी में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी खजाना ले जा रही ट्रेन को लूट लिया ।

1928 में साइमन कमीशन भारत आया जिसका विरोध करते हुए लाला लाजपत राय की मृत्यु हुई ।

8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली पर बम फेंका

12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने साबरमती से दाण्ड़ी यात्रा आरम्भ की ।

6 अप्रैल 1930 को दाण्डी पहुँच कर महात्मा गाँधी नमक कानून तोड़ा व सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत की ।

1930 में डॉ . अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों को दमित वर्ग एसोसिएशन में संगठित किया ।

23 मार्च 1931 को भगत सिंह , सुखदेव एवं राजगुरू को फांसी दे दी गई ।

1931 गांधी इरविन समझौता व सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस ले लिया ।

1931 में महात्मा गाँधी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया । परंतु उन्हें वहाँ अपेक्षित सफलता हाथ नहीं लगी ।

1932 मे महात्मा गांधी एवं अम्बेडकर के मध्य पूना पैक्ट हुआ ।

1933 में चौधरी रहमत अली सर्वप्रथम पाकिस्तान का विचार सामने रखा ।

1935 में भारत शासन अधिनियम पारित हुआ व प्रांतीय सरकार का गठन ।

1939 में द्वितीय विश्व युद्ध का आरंभ ।

1940 के मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवशेन में पाकिस्तान की मांग का संकल्प पास किया गया ।

1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरूआत व गांधी जी ने करो या मरो का नारा दिया ।

1945 में अमेरीका ने जापान पर परमाणु हमला किया व द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया ।

1946 में कैबिनेट मिशन संविधान सभा के प्रस्ताव के साथ भारत आया ।

15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ।


Class 10 History Chapter 2  Important Question Answer

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01. सत्याग्रह के विचार का क्या अर्थ है?

अथवा, 

गांधीजी के अनुसार सत्याग्रह के विचार की व्याख्या कीजिए। [BSEB 2014]

उत्तर ⇒ सत्याग्रह शुद्ध आत्मबल है। सत्य ही आत्मा का सार है। इसलिए इस बल को सत्याग्रह कहा जाता है।

आत्मा को ज्ञान से सूचित किया जाता है। यह प्रेम की लौ जलाता है। अहिंसा परम धर्म है। सत्याग्रह के विचार ने सत्य की शक्ति और सत्य की खोज की आवश्यकता पर बल दिया। इसने सुझाव दिया कि यदि कारण सही था, यदि संघर्ष अन्याय के खिलाफ था, तो अत्याचारी से लड़ने के लिए शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं थी।

प्रतिशोध या आक्रामक हुए बिना, एक सत्याग्रही अहिंसा के माध्यम से युद्ध जीत सकता था। सत्याग्रह में, उत्पीड़कों सहित लोगों को – हिंसा के माध्यम से सत्य को स्वीकार करने के लिए मजबूर करने के बजाय, सत्य को देखने के लिए राजी करना पड़ा। इस प्रकार इस संघर्ष से अंतत: सत्य की विजय निश्चित थी। महात्मा गांधी का मानना ​​था कि अहिंसा का यह धर्म सभी भारतीयों को एकजुट करेगा।

02. भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारणों का परीक्षण करें।

उत्तर ⇒  19वीं शताब्दी में भारतीय राष्ट्रवाद के उदय में अनेक कारणों का योगदान था। इनमें निम्नलिखित कारण प्रमुख थे-

(i) अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरुद्ध असंतोष – भारतीय राष्ट्रीयता के विकास का सबसे प्रमुख कारण अंग्रेजी नीतियों के प्रति बढ़ता असंतोष था। अंग्रेजी सरकार की नीतियों के शोषण के शिकार देशी रजवाड़े, ताल्लुकेदार, महाजन, कृषक, मजदूर, मध्यम वर्ग सभी बने। सभी अंग्रेजी शासन को अभिशाप मानकर इसका खात्मा करने का मन बनाने लगे।

(ii) आर्थिक कारण – भारतीय राष्ट्रवाद का उदयं का एक महत्त्वपूर्ण कारण आर्थिक था। सरकारी आर्थिक नीतियों के कारण कृषि और कुटीर-उद्योग धंधे नष्ट हो गए। किसानों पर लगान एवं कर्ज का बोझ चढ़ गया। किसानों को नगदी फसल नील, गन्ना, कपास उपजाने को बाध्य कर उसका भी मुनाफा सरकार ने उठाया। अंग्रेजी आर्थिक नीति से भारत से धन का निष्कासन हुआ, जिससे भारत की गरीबी बढ़ी। इससे भारतीयों में प्रतिक्रिया हुई एवं राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ।

(iii) अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार-  19वीं शताब्दी में भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार ने भारतीयों की मानसिक जड़ता समाप्त कर दी। वे भी अब अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम, फ्रांस एवं यूरोप की अन्य महान क्रांतियों से परिचित हुए। रूसो, वाल्टेयर, मेजिनी, गैरीबाल्डी जैसे दार्शनिकों एवं क्रांतिकारियों के विचारों का प्रभाव उनपरपरा पड़ा ।

(iv) सामाजिक, धार्मिक सुधार आंदोलन का प्रभाव –  19वीं शताब्दी के सामाजिक, धार्मिक सुधार आंदोलनों ने भी राष्ट्रीयता की भावना विकसित की। ब्रह्मसमाज, आर्य-समाज, प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन ने एकता, समानता एवं स्वतंत्रता की भावना जागृत की तथा भारतीयों में आत्म-सम्मान, गौरव एवं राष्ट्रीयता की भावना का विकास करने में योगदान किया।

(v) राजनीतिक एकीकरण- भारत में अंग्रेजों ने उग्र साम्राज्यवादी नीति अपनाई। वारेन हेस्टिंग्स से लेकर लॉर्ड डलहौजी ने येन-केन-प्रकारेण देशी रियासतों को अपना अधीनस्थ बना लिया। 1857 के विद्रोह के बाद महारानी विक्टोरिया ने सभी देशी राज्यों की अंग्रेजी अधिसत्ता में ले लिया। इससे एक प्रकार से भारत का । राजनीतिक एवं प्रशासनिक एकीकरण हुआ। लॉर्ड डलहौजी द्वारा रेल, डाक-तार की व्यवस्था से आवागमन और संचार की सुविधा बढ़ गई। इससे संपूर्ण भारत में। स्थानीयता की भावना के स्थान पर राष्ट्रीयता की भावना बढ़ी।

03. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में गाँधीजी के योगदान की विवेचना करें।

उत्तर ⇒ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में 1919-1947 का काल गाँधी युग के नाम से जाना जाता है। राष्ट्रीय आंदोलन को गाँधीजी ने एक नई दिशा दिया। सत्य अहिंसा, सत्याग्रह का प्रयोग कर गाँधीजी भारतीय राजनीति में छा गए। इन्हीं अस्ता का सहारा लेकर वे औपनिवेशिक सरकार के विरुद्ध राष्ट्रीय आंदोलनों क जन-आंदोलन में परिवर्तित कर दिया। 1917-18 में उन्होंने चंपारण, खेड़ा और अहमदाबाद में सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया। 1920 ई० में गाँधीजी ने अहसयोग आंदोलन आरंभ किया। जिसम बहिष्कार, स्वदेशी तथा रचनात्मक कार्यक्रमों पर बल दिया गया। 1930 में गाँधी जी ने सरकारी नीतियों के विरुद्ध दूसरा व्यापक आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन आरभ किया। इसका आरंभ उन्होंने 12 मार्च, 1930 को दांडी यात्रा से किया।

गाँधीजी का 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन था जिसमें उन्होंने लोगों को प्रेरित करते हुए ‘करो या मरो’ का मंत्र दिया। गाँधीजी के सतत् प्रयत्नों के परिणामस्वरूप ही 15 अगस्त, 1947 को भारत का आजादी प्राप्त हुई। वे एक राजनीतिक नेता के साथ-साथ प्रबुद्ध चिंतन समाजसुधारक एवं हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे।

04. खिलाफत आंदोलन क्यों हुआ ? गाँधीजी ने इसका समर्थन क्यों किया?

उत्तर ⇒ तुर्की (ऑटोमन साम्राज्य की राजधानी) का खलीफा जो ऑटोमन साम्राज्य का सुलतान भी था, संपूर्ण इस्लामी जगत का धर्मगुरु था। पैगंबर के बाद सबसे अधिक प्रतिष्ठा उसी की थी। प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी के साथ तुर्की भी पराजित हुआ। पराजित तुर्की पर विजयी मिस्र-राष्ट्रों ने कठोर संधि थोप दी (सेव्र की संधि)। ऑटोमन साम्राज्य को विखंडित कर दिया गया।

खलीफा और ऑटोमन साम्राज्य के साथ किए गए व्यवहार से भारतीय मुसलमानों में आक्रोश व्याप्त हो गया। वे तुर्की के सुल्तान एवं खलीफा की शक्ति और प्रतिष्ठा की पुनः स्थापना के लिए संघर्ष करने को तैयार हो गए। इसके लिए खिलाफत आंदोलन आरंभ किया गया। 1919 में अली बंधुओं (मोहम्मद अली और शौकत अली) ने बंबई में खिलाफत समिति का गठन किया। आंदोलन चलाने के लिए जगह-जगह खिलाफत कमिटियाँ बनाकर तुर्की के साथ किए गए अन्याय के विरुद्ध जनमत तैयार करने का प्रयास किया गया। ‘ गाँधीजी ने इस आंदोलन को अपना समर्थन देकर हिंदू-मुसलमान एकता स्थापित करने और एक बड़ा सशक्त राजविरोधी आंदोलन आरंभ करने का निर्णय लिया।

05. अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कैसे हुई ? इसके प्रारंभिक उद्देश्य क्या थे?

उत्तर ⇒  भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत 19 वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से माना जाता है। 1883 ई० में इंडियन एसोसिएशन के सचिव आनंद मोहन बोस ने कलकत्ता में ‘नेशनल काँफ्रंस’ नामक अखिल भारतीय संगठन का सम्मेलन बुलाया जिसका उद्देश्य बिखरे हुए राष्ट्रवादा शक्तियों को एकजुट करना था। परंतु, दूसरी तरफ एक अंग्रेज अधिकारी एलेन ऑक्टोवियन ह्यूम ने इस दिशा में अपने प्रयास शुरू किए और 1884 में ”भारतीय राष्ट्रीय संघ’ की स्थापना की। भारतीयों को संवैधानिक मार्ग अपनाने और सरकार के लिए सुरक्षा कवच बनाने के उद्देश्य से ए०ओ०ह्यूम ने 28 दिसम्बर, 1885 को अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। इसके प्रारंभिक उद्देश्य निम्नलिखित थे

(i) भारत के विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय हित के नाम से जुड़े लोगों के , संगठनों के बीच एकता की स्थापना का प्रयास।

(ii) देशवासियों के बीच मित्रता और सद्भावना का संबंध स्थापित कर धर्म, वंश, जाति या प्रांतीय विद्वेष को समाप्त करना।

(iii) राष्ट्रीय एकता के विकास एवं सुदृढ़ीकरण के लिए हर संभव प्रयास करना।

(iv) राजनीतिक तथा सामाजिक प्रश्नों पर भारत के प्रमुख नागरिकों से चर्चा करना एवं उनके संबंध में प्रमाणों का लेखा तैयार करना।

(v) प्रार्थना पत्रों तथा स्मार पत्रों द्वारा वायसराय एवं उनकी काउन्सिल से सुधारों हेतु प्रयास करना। इस प्रकार कांग्रेस का प्रारंभिक उद्देश्य शासन में सिर्फ सुधार करना था।

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06. असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के स्वरूप में क्या अंतर था ? महिलाओं की सविनय अवज्ञा आंदोलन में क्या भूमिका थी ?

उत्तर ⇒ असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के स्वरूप में काफी विभिन्नता थी। असहयोग आंदोलन में जहाँ सरकार के साथ असहयोग करने की बात थी, वहीं सविनय अवज्ञा आंदोलन में न केवल अंग्रेजों का सहयोग न करने के लिए बल्कि औपनिवेशिक कानूनों का भी उल्लंघन करने के लिए आह्वान किया जाने लगा। असहयोग आंदोलन की तुलना में सविनय अवज्ञा आंदोलन काफी व्यापक जनाधार वाला आंदोलन साबित हुआ।

सविनय अवज्ञा आंदोलन में पहली बार महिलाओं ने बड़ी संख्या में भाग लिया। वे घरों की चारदीवारी से बाहर निकलकर गांधीजी की सभाओं में भाग लिया। अनेक स्थानों पर स्त्रियों ने नमक बनाकर नमक कानून भंग किया। स्त्रियों ने विदेशी वस्त्र एवं शराब के दुकानों की पिकेटिंग की। स्त्रियों ने चरखा चलाकर सूत काते और स्वदेशी को प्रोत्साहन दिया। शहरी क्षेत्रों में ऊँची जाति की महिलाएं आंदोलन में सक्रिय थीं तो ग्रामीण इलाकों में संपन्न परिवार की किसान स्त्रिया।

07. सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारणों की विवेचना करें।

उत्तर ⇒ ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ गाँधीजी के नेतृत्व में 1930 ई० में शुरू किया गया सविनय अवज्ञा आंदोलन के महत्त्वपूर्ण कारण निम्नलिखित थे –

(i) साइमन कमीशन-  सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में बनाया गया यह 7 सदस्यीय आयोग था जिसके सभी सदस्य अंग्रेज थे। भारत में साइमन कमीशन के विरोध का मुख्य कारण कमीशन में एक भी भारतीय को नहीं रखा जाना तथा भारत के स्वशासन के संबंध में निर्णय विदेशियों द्वारा किया जाना था।

(ii) नेहरू रिपोर्ट-   कांग्रेस ने फरवरी, 1928 में दिल्ली में एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन किया। समिति ने ब्रिटिश सरकार से डोमिनियन स्टेट’ की दर्जा देने की माँग की। यद्यपि नेहरू रिपोर्ट स्वीकृत नहीं हो सका, लेकिन संप्रदायिकता की भावना उभरकर सामने आई। अतः गाँधीजी ने इससे निपटने के लिए सविनय अवज्ञा का कार्यक्रम पेश किया।

(iii) विश्वव्यापी आर्थिक मंदी-  1929-30 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा पड़ा। भारत का निर्यात कम हो गया लेकिन अंग्रेजों ने भारत से धन का निष्कासन बंद नहीं किया। पूरे देश का वातावरण सरकार के खिलाफ था। इस प्रकार सविनय अवज्ञा आंदोलन हेतु एक उपयुक्त अवसर दिखाई पड़ा।

(iv) समाजवाद का बढ़ता प्रभाव-  इस समय कांग्रेस के युवा वर्गों के बीच मार्क्सवाद एवं समाजवादी विचार तेजी से फैल रहे थे, इसकी अभिव्यक्ति कांग्रेस के अंदर वामपंथ के उदय के रूप में हुई। वामपंथी दबाव को संतुलित करने के आंदोलन के नए कार्यक्रम की आवश्यकता थी।

(v) क्रांतिकारी आंदोलनों का उभार-  इस समय भारत की स्थिति विस्फोटक थी। ‘मेरठ षड्यंत्र केस’ और ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ ने सरकार विरोधी विचारधारा को उग्र बना दिया था। बंगाल में भी क्रांतिकारी गतिविधियाँ एक बार फिर उभरी।

(vi) पूर्णस्वराज्य की माँग-  दिसंबर, 1929 के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पर्ण स्वराज्य की माँग की गयी। 26 जनवरी, 1930 को पूर्ण स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा के साथ ही पूरे देश में उत्साह की एक नई लहर जागृत हुई।

(vii) गाँधी का समझौतावादी रुख – आंदोलन प्रारंभ करने से पूर्व गाँधी ने वायसराय लार्ड इरावन के समक्ष अपनी 11 सूत्रीय माँग को रखा। परन्तु इरविन ने मांग मानना तो दूर गाँधी से मिलने से भी इनकार कर दिया। सरकार का दमन चक्र तेजी से चल रहा था। अतः बाध्य होकर गाँधीजी ने अपना आंदोलन डांडी मार्च आरम्भ करने का निश्चय किया।

08. जालियाँवाला बाग हत्याकांड क्यों हुआ ? इसने राष्ट्रीय आंदोलन को कैसे बढ़ावा दिया ?

उत्तर ⇒  भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों पर अकुंश लगाने के उद्देश्य से सरकार ने 1919 में रॉलेट कानून (क्रांतिकारी एवं अराजकता अधिनियम) बनाया। इस कानून के अनुसार सरकार किसी को भी संदेह के आधार पर गिरफ्तार कर बिना मुकदमा चलाए उसको दंडित कर सकती थी तथा इसके खिलाफ कोई अपील भी नहीं की जा सकती थी। भारतीयों ने इस कानून का कड़ा विरोध किया। इसे ‘काला कानून’ की संज्ञा दी गई। अमृतसर में एक बहुत बड़ा प्रदर्शन हुआ जिसकी अध्यक्षता डॉ० सत्यपाल और डॉ० सैफुद्दीन किचलू कर रहे थे। सरकार ने दोनों को गिरफ्तार कर अमृतसर से निष्कासित कर दिया।

जनरल डायर ने पंजाब में फौजी शासन लागू कर आतंक का राज स्थापित कर दिया। पंजाब के लोग अपने प्रिय नेता की गिरफ्तारी तथा सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ 13 अप्रैल, 1919 को वैसाखी मेले के अवसर पर अमृतसर के जालियांवाला बाग में एक विराट सम्मेलन कर विरोध प्रकट कर रहे थे, जिसके कारण ही जनरल डायर ने निहत्थी जनता पर गोलियाँ चलवा दी। यह घटना जालियाँवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना गया।

जालियाँवाला बाग की घटना ने पूरे भारत को आक्रोशित कर दिया। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन और हडताल हुए। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इस घटना के विरोध में अपना ‘सर’ का खिताब वापस लौटाने की घोषणा की। वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य शंकरन नायर ने इस्तीफा दे दिया। गाँधीजी ने कैसर-ए-हिन्द की उपाधि त्याग दी। जालियाँवाला बाग हत्याकांड ने राष्ट्रीय आंदोलन में एक नई जान फूंक दी।

09. प्रथम विश्वयद्ध के भारतीय राष्टीय आंदोलन के साथ अन्तसबमा की विवेचना करें।

उत्तर ⇒  प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत में होनेवाली तमाम घटनाएँ से उत्प परिस्थितियों की ही देन थी। इसने भारत में नई आर्थिक और राजनैतिक स्थिति उत्प की जिससे भारतीय राष्ट्रवाद ज्यादा परिपक्व हुआ। महायुद्ध के बाद भारत आर्थिक स्थिति बिगडी। पहले तो कीमतें बढी और फिर आर्थिक गतिविधिया होने लगी जिससे बेरोजगारी बढी। महँगाई अपने चरम बिन्दु पर पहुँच गयी | मजदूर, किसान दस्तकारों का सबसे अधिक प्रभावित किया। इसी परिस्थिति :

धागपतियों का एक वर्ग का उदय हुआ। युद्ध के बाद भारत में विदेशा पूंजी का प्रभाव बढ़ा। भारतीय उद्योगपतियों ने सरकार से विदेशी वस्तुओं के आयात में भारी आयात शुल्क लगाने की माँग की जिससे उनका घरेलू उद्योग बढ़े लेकिन सरकार ने उनकी मांगों को इनकार कर दिया। अंततः प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत सहित पूरे एशिया और अफ्रीका में राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रबल बनाया।

10. भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में जनजातीय लोगों की क्या भूमिका थी ?

उत्तर ⇒ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में जनजातियों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। 19 वीं एवं 20 वीं शताब्दियों में उनके अनेक आंदोलन हुए। 19 वा शताब्दी में हो, कोल, संथाल एवं बिरसा मुंडा आंदोलन हुए। 1916 में दक्षिण भारत की गोदावरी पहाड़ियों के पुराने रंपा प्रदेश में विद्रोह हुआ। 1920 के दशक में आंध्र प्रदेश की गूडेम पहाड़ियों में अल्लूरी सीताराम राजू का विद्रोह हुआ।

छोटानागपुर में उराँव जनजातियों के बीच जतरा भगत के नेतृत्व में ताना भगत आंदोलन चला। इन प्रमुख आंदोलनों के अतिरिक्त देश के अन्य भागों में भी अनेक जनजातीय विद्रोह हुए, जैसे – उड़ीसा में 1914 का खोंड विद्रोह, 1917 में मयूरभंज में संथालों एवं मणिपुर में थोडोई कुकियों का विद्रोह, बस्तर में 1910 में गुंदा धुर का विद्रोह इत्यादि। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत की जनजातियों एवं भारत छोडो आंदोलन के समय झारखंड के आदिवासियों ने भी विद्रोह किए। ये सभी जनजातीय विद्रोह प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े हुए थे।


Class 10 History chapter 2 Important Objective Question Answer (MCQ)

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1. यूरोप में राष्ट्रवाद के साथ किन का उदय हुआ ?

    1. राष्ट्र राज्यों
    2. राष्ट्र चेतना
    3. राष्ट्र प्रेम
    4. राष्ट्र शक्ति

Ans –  A 

2. यूरोप में आधुनिक राष्ट्रवाद ने किससे सम्पर्क स्थापित किए ?

    1. नए चिह्नों
    2. प्रतीकों ने
    3. नए विचारों व् गीतों ने
    4. उपरोक्त सभी

Ans – D 

3. किसके नेत्रत्व में कांग्रेस ने एक विशाल आन्दोलन खड़ा किया ?

    1. महात्मा गांधी
    2. जवाहर लाला नेहरु
    3. राजीव गाँधी
    4. राजेन्द्र प्रसाद

Ans – 

4. प्रथम विश्व युद्ध ने भारत में कैसी स्थिति उत्पन्न कर दी थी ?

    1. एक नई राजनितिक
    2. आर्थिक स्थिति
    3. 1 और 2 दोनों
    4. इनमें से कोई नहीं

Ans – C

5. किससे किस वर्ष तक देश के बहुत सारे भागों में फसल नष्ट हो गई थी ?

    1. 1918-21
    2. 1917-22
    3. 1918-22
    4. 1919-23

Ans – A 

6. किस वर्ष तक देश के बहुत सरे भागों में महामारी फैल गई ?

    1. 1919
    2. 1920
    3. 1921
    4. 1922

Ans – C 

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7. महामारी और दुर्भिख के कारण कितने लोग मारे गए ?

    1. 121-131 लाख
    2. 120-130 लाख
    3. 110-120 लाख
    4. 120-140 लाख

Ans – B  

8. किस वर्ष महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे ?

    1. 1913
    2. 1915
    3. 1914
    4. 1912

Ans – B 

9. सत्य की शक्ति व खोज किस विचार पर बल देता है ?

    1. सत्याग्रह
    2. आग्रह
    3. आंदोलन
    4. विद्रोह

Ans – A  

10. भारत में सत्याग्रह आंदोलन किसने चलाया ?

    1. नेहरु जी ने
    2. गाँधी जी ने
    3. लाला लाजपतराय जी ने
    4. राजीव गाँधी जी ने

Ans – B  

11. गुजरात के खेड़ा ज़िले के किसानों की सहायता के लिए सत्याग्रह का आयोजन कब किया गया ?

    1. 1916
    2. 1915
    3. 1917
    4. 1918

Ans – C 

12. गाँधी जी अहमदाबाद कब गए ?

    1. 1916
    2. 1917
    3. 1918
    4. 1919

Ans – C 

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13. रोलेट एक्ट कब पारित हुआ था ?

    1. 1917
    2. 1918
    3. 1919
    4. 1920

Ans – C 

14. जलियाँवाला बाग हत्याकांड कब हुआ ?

    1. 12 अप्रैल
    2. 13 अप्रैल
    3. 14 अप्रैल
    4. 11 अप्रैल

Ans – B 

15. अमृतसर में पुलिस ने एक शांतिपूर्ण जुलूस पर गोली कब चलाई ?

    1. 12 अप्रैल
    2. 13 अप्रैल
    3. 11 अप्रैल
    4. 10 अप्रैल

Ans – 

16. गांधीजी ने साबरमती आश्रम की स्थापना किस वर्ष की?

    • (A) 1995 ईस्वी में
    • (B) 1900 ईस्वी में
    • (C) 1915 ईस्वी में
    • (D) 1916 ईस्वी में

Ans – (C)  

17. सिपाही विद्रोह कब हुआ था?

    • (A) 1855 ईस्वी में
    • (B) 1857 ईस्वी में
    • (C) 1885 ईस्वी में
    • (D) 1887 ईस्वी में

Ans – (B) 

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18. वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि किस किसान आंदोलन के दौरान दी गई?

    • (A) बारदोली
    • (B) अहमदाबाद
    • (C) खेड़ा
    • (D) चंपारण

Ans – (A)  

19. पूर्व स्वराज की मांग का प्रस्ताव कांग्रेस के किस वार्षिक अधिवेशन में पारित हुआ?

    • (A) 1929, लाहौर
    • (B) 1931, कराची
    • (C) 1933, कोलकाता
    • (D) 1937, बेलगांव

Ans – (A)  

20. भारत में खिलाफत आंदोलन कब और किस देश के शासन के समर्थन में शुरू हुआ?

    • (A) 1920 ईस्वी तुर्की
    • (B) 1920 ईस्वी अरब
    • (C) 1920 ईस्वी फ्रांस
    • (D) 1920 ईस्वी नागपुर

Ans – (A) 

21 . गदर पार्टी की स्थापना किसने और कब की?

    • (A) गुरुदयाल सिंह 1916 ईस्वी में
    • (B) चंद्रशेखर आजाद 1920 ईस्वी में
    • (C) लाला हरदयाल 1913 ईस्वी में
    • (D) सोहन सिंह भाखना 1918 ईस्वी में

Ans – (C)  

22. असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के किस अधिवेशन में पारित हुआ?

    • (A) सितंबर 1920 ईस्वी, कोलकाता
    • (B) अक्टूबर 1920 ईस्वी, अहमदाबाद
    • (C) नवंबर 1920 ईस्वी, फैजपुर
    • (D) दिसंबर 1920ईस्वी, नागपुर

Ans – (A) 

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