Class 10 Science Chapter 14 Notes in Hindi | ऊर्जा के स्रोत

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Class 10 Science Chapter 14 Notes in Hindi : covered science Chapter 14 easy language with full details details & concept  इस अद्याय में हमलोग जानेंगे कि – ऊर्जा किसे कहते है, ऊर्जा के उत्तम स्रोत के लक्षण क्या क्या है, ईंधन किसे कहते है, ऊर्जा के स्रोत क्या है, जीवाश्म ईंधन किसे कहते है, तापीय विद्युत संयंत्र किसे कहेत है, जैव मात्रा क्या है, बायो गैस किसे खतरे है, पवन ऊर्जा किसे कहते है, सौर ऊर्जा क्या होते है, सौर सेल किसे कहते है?

Class 10 Science Chapter 14 Notes in Hindi full details

category  Class 10 Science Notes in Hindi
subjects  science
Chapter Name Class 10 sources of energy (ऊर्जा के स्रोत)
content Class 10 Science Chapter 14 Notes in Hindi
class  10th
medium Hindi
Book NCERT
special for Board Exam
type readable and PDF

NCERT class 10 science Chapter 14 notes in Hindi

विज्ञान अद्याय 14 सभी महत्पूर्ण टॉपिक तथा उस से सम्बंधित बातों का चर्चा करेंगे।


विषय – विज्ञान  अध्याय – 14

ऊर्जा के स्रोत

sources of energy


ऊर्जा :-

कार्य करने की क्षमताऊर्जा कहलाती है।यह एक अदीश राशि है तथा इसका S.I मात्रक “जुल” होता है।

ऊर्जा के स्त्रोत :-

वैसी वस्तु जिनसे हमें ऊर्जा प्राप्त होती है , उसे ऊर्जा के स्त्रोत कहते है । जैसे :- कोयला , यूरेनियम , सूर्य , हवा , लकड़ी आदि ।

ऊर्जा की आवश्यकता :-

प्रकाश संश्लेषण
भोजन पकाने के लिये ।
( CFL , LED , बल्ब ) प्रकाश उत्पन्न करने के लिए ।
यातायात के लिए ।
मशीनों को चलाने के लिए ।
उद्योगों एवं कृषि कार्य में ।

ऊर्जा के उत्तम स्रोत के लक्षण :-

प्रति एकांक आयतन अथवा प्रति एकांक द्रव्यमान अधिक कार्य करे । ( उच्च कैलोरोफिक माप )
सस्ता एवं सरलता से सुलभ हो ।
भण्डारण तथा परिवहन में आसान हो ।
प्रयोग करने में आसान तथा सुरक्षित हो ।
पर्यावरण को प्रदूषित न करे ।

ईंधन :-

वह पदार्थ जो जलने पर ऊष्मा तथा प्रकाश देता है , ईंधन कहलाता है ।

अच्छे ईंधन के गुण :-

उच्च कैलोरोफिक माप
अधिक धुआँ या हानिकारक गैसें उत्पन्न न करे ।
मध्यम ज्वलन ताप होना चाहिए ।
सस्ता व आसानी से उपलब्ध हो ।
आसानी से जले ।
भडारण व परिवहन में आसान हो ।

ऊर्जा के स्रोत :-

पारंपरिक स्रोत
वैकल्पिक / गैर पारंपरिक स्रोत
पारंपरिक स्रोत जैसे :-

जीवाश्म ईंधन ( कोयला , पेट्रोलियम )
तापीय विद्युत संयंत्र
जल विद्युत संयंत्र
जैव मात्रा ( बायो मास )
पवन ऊर्जा
वैकल्पिक / गैर पारंपरिक स्रोत जैसे :-

सौर ऊर्जा ( सौर कुकर सौर पैनल )
समुद्रों से ऊर्जा – ज्वारीय , तरंग , महासागरीय
भूतापीय ऊर्जा
नाभिकीय ऊर्जा

ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत :-

ऊर्जा के वे स्रोत जो जनसाधारण द्वारा लंबे समय से प्रयोग किए जाते रहे हैं , ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत कहलाते हैं । उदाहरण :- जीवाश्म ईंधन , जैव- मात्रा , जलीय ऊर्जा , पवन ऊर्जा । इनका उपयोग बहुत से कार्य क्षेत्रों में होता है ।

जीवाश्म ईंधन :-

जीवाश्म से प्राप्त ईंधन जैसे – कोयला , पैट्रोलियम , जीवाश्म ईंधन कहलाते हैं ।

लाखों वर्षों में उत्पादन , सीमित भण्डारण , अनवीकरणीय स्रोत ।

भारतवर्ष में विश्व का 6% कोयला भण्डार है जो कि वर्तमान दर से खर्च करने पर अधिकतम 250 वर्षों तक बने रहेंगे ।

जीवाश्म ईंधन जलाने पर उत्पन्न प्रदूषण / हानियाँ :-

जीवाश्म ईंधन के जलने से मुक्त कार्बन , नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड वायुप्रदूषण तथा अम्लवर्षा का कारण बनते हैं जोकि जल एवं मृदा के संसाधनों को प्रभावित करती है ।

उत्पन्न कार्बन डाइ – ऑक्साइड ग्रीन हाउस प्रभाव को उत्पन्न करती है जिससे कि धरती पर अत्यधिक गर्मी हो जाती है ।

जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न प्रदूषण को कम करने के उपाय :-

जीवाश्मी ईंधन के जलाने के कारण उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को कुछ सीमाओं तक दहन प्रक्रम की दक्षता में वृद्धि करके कम किया जा सकता ।
विविध तकनीकों का प्रयोग कर , दहन के फलस्वरूप उत्पन्न गैसों के वातावरण में पलायन को कम करना ।

तापीय विद्युत संयंत्र :-

जीवाश्म ईंधन को जलाकर तापीय ऊर्जा घरों में ताप विद्युत उत्पन्न की जाती है ।

तापीय विद्युत संयत्र कोयले तथा तेल के क्षेत्रों के निकट स्थापित किए जाते हैं , जिससे परिवहन पर होने वाले व्यय को कम कर सकें ।

जल विद्युत संयंत्र :-

जल विद्युत संयंत्रों में गिरते जल की स्थितिज ऊर्जा को विद्युत में रूपांतरित किया जाता है ।

चूँकि ऐसे जल प्रपातों की संख्या बहुत कम है जिनका उपयोग स्थितिज ऊर्जा के स्रोत के रूप में किया जा सके , अतः जल विद्युत संयंत्रों को बाँधों से संबद्ध किया गया है ।

भारत में ऊर्जा की मांग का 25 % की पूर्ति जल – विद्युत संयत्रों से की जाती है ।

जल द्वारा विद्युत उत्पादन होना :-

जल विद्युत उत्पन्न करने के लिए नदियों के बहाव को रोककर बड़े जलाशयों ( कृत्रिम झीलों ) में जल एकत्र करने के लिए ऊँचे – ऊँचे बाँध बनाए जाते हैं । इन जलाशयों में जल संचित होता रहता है जिसके फलस्वरूप इनमें भरे जल का तल ऊँचा हो जाता है ।

बाँध के ऊपरी भाग से पाइपों द्वारा जल , बाँध के आधार के पास स्थापित टरबाइन के ब्लेडों पर मुक्त रूप से गिरता है फलस्वरूप टरबाइन के ब्लेड घूर्णन गति करते हैं और जनित्र द्वारा विद्युत उत्पादन होता है ।

जल विद्युत संयंत्र से लाभ :-

पर्यावरण को कोई हानि नहीं ।
जल विद्युत ऊर्जा एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है ।
बाँधों के निर्माण से बाढ़ रोकना , सिंचाई करना सुलभ तथा मत्स्य आवर्धन संभव है ।
जल विद्युत संयंत्र से हानियाँ :-

बाँधों के निर्माण से कृषियोग्य भूमि तथा मानव आवास डूबने के कारण नष्ट हो जाते हैं ।
पारिस्थितिक तंत्र नष्ट हो जाते हैं ।
पेड़ पौधों , वनस्पति का जल में डूबने से अवायवीय परिस्थितियों में सड़ने से मीथेन गैस का उत्पन्न होना जो कि ग्रीन हाउस गैस है ।
विस्थापित लोगों के संतोषजनक पुनर्वास की समस्या ।
ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के उपयोग के लिए प्रौद्योगिकी में सुधार

जैव मात्रा ( बायो मास ) :-

कृषि व जन्तु अपशिष्ट जिन्हें ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है जैसे – लकड़ी , गोबर , सूखे तने , पत्ते आदि ।

लकड़ी :- लकड़ी जैव मात्रा का एक रूप है जिसे लम्बे समय से ईंधन के रुप में प्रयोग किया जाता है ।

लकड़ी से हानियाँ :-

जलने पर बहुत अधिक धुआँ उत्पन्न करती है जो स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं ।
अधिक ऊष्मा का न देना
अत : उपकरणों की तकनीकी में सुधार करके परंपरागत ऊर्जा स्रोतों की दक्षता बढ़ाई जा सकती है । जैसे :- लकड़ी से चारकोल बनाना ।

चारकोल :- लकड़ी को वायु की सीमित आपूर्ति में जलाने से उसमें उपसिथत जल तथा वाष्पशील पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और अवशेष के रुप में चारकोल प्राप्त होता है ।

चारकोल , लकड़ी से बेहतर ईंधन क्यों है :-

चारकोल , लकड़ी से बेहतर ईंधन है क्योंकि :-
बिना ज्वाला के जलता है ।
अपेक्षाकृत कम धुआँ निकलता है ।
ऊष्मा उत्पन्न करने की क्षमता अधिक होती है ।
गोबर के उपले :- जैव मात्रा का एक रूप है परन्तु ईंधन के रूप में प्रयोग करने में कई हानियाँ होती है , जैसे :-

बहुत अधिक धुआँ उत्पन्न करना ।
पूरी तरह दहन न होने के कारण राख का बनना ।
परन्तु तकनीकी सहायता से , गोबर का उपयोग गोबर गैस संयत्र में होने पर वह एक सस्ता व उत्तम ईंधन बन जाता है ।

बायो गैस :-

गोबर , फसलों के कटने के पश्चात बचे अवशिष्ट , सब्जियों के अपशिष्ट तथा वाहित मल जब ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में अपघटित होते हैं तो बायो गैस का निर्माण होता है ।

अपघटन के फलस्वरूप मेथैन , कार्बन डाई – आक्साइड , हाइड्रोजन तथा हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गैसें उत्पन्न होती हैं । जैव गैस को संपाचित्र के ऊपर बनी टंकी में संचित किया जाता है , जिसे पाइपों द्वारा उपयोग के लिए निकाला जाता है ।

बायो गैस बनाने की विधि :-

जैव गैस बनाने के लिए मिश्रण टंकी में गोबर तथा जल का एक गाढ़ा घोल , जिसे कर्दम कहते हैं बनाया जाता है जहाँ से इसे संपाचित्र में डाल देते हैं ।
संपाचित्र चारों ओर से बंद एक कक्ष होता है जिसमें ऑक्सीजन नहीं होती ।
अवायवीय सूक्ष्मजीव जिन्हें जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती , गोबर की स्लरी के जटिल यौगिकों का अपघटन कर देते हैं ।
अपघटन – प्रक्रम पूरा होने तथा इसके फलस्वरूप मेथैन , कार्बन डाइऑक्साइड , हाइड्रोजन तथा हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गैसें उत्पन्न होने में कुछ दिन लगते हैं ।
जैव गैस को संपाचित्र के ऊपर बनी गैस टंकी में संचित किया जाता है ।
जैव गैस को गैस टंकी से उपयोग के लिए पाइपों द्वारा बाहर निकाल लिया जाता है ।

बायो गैस के लाभ :-

जैव गैस एक उत्तम ईंधन है क्योंकि इसमें 75 % तक मेथैन गैस होती है ।
धुआँ उत्पन्न किए बिना जलती है ।
जलने के पश्चात कोयला तथा लकड़ी की भांति राख जैसा अपशिष्ट शेष नहीं बचता ।
तापन क्षमता का उच्च होना ।
बायो गैस का प्रयोग प्रकाश के स्रोत के रूप में किया जाता है ।
संयंत्र में शेष बची स्लरी में नाइट्रोजन तथा फास्फोरस प्रचुर मात्रा में होते हैं जो कि उत्तम खाद के रूप में काम आती है ।
अपशिष्ट पदार्थों के निपटारे का सुरक्षित उपाय है ।

बायो गैस दोहन की सीमाऐं :-

अधिक प्रारंभिक लागत ।
अत्याधिक मात्रा में गोबर की खपत ।
रखरखाव पर अधिक खर्च 

पवन ऊर्जा :-

सूर्य विकिरणों द्वारा भूखंडों तथा जलाशयों के असमान गर्म होने के कारण वायु में गति उत्पन्न होती है तथा पवनों का प्रवाह होता है ।

पवनों की गतिज ऊर्जा का उपयोग पवन चक्कियों द्वारा निम्न कार्यों में किया जाता है । जैसे :-

जल को कुओं से खींचने में
अनाज चक्कियों के चलाने में
टरबाइन को घूमाने में जिससे जनित्र द्वारा वैद्युत उत्पन्न की जा सके ।
परंतु एकल पवन चक्की से बहुत कम उत्पादन होता है , इसीलिए बहुत सारी पवन चक्कियों को एक साथ स्थापित किया जाता है और यह स्थान पवन ऊर्जा फार्म कहलाता है ।

पवन चक्की चलाने हेतु पवन गति 15-20 किमी प्रति घंटा होनी आवश्यक है ।

डेनमार्क को ” पवनों का देश ” कहते हैं ।

भारत का पवन ऊर्जा द्वारा विद्युत उत्पन्न करने में 5 वाँ स्थान है ।

तमिलनाडु में कन्याकुमारी के निकट भारत का विशालतम पवन ऊर्जा फार्म स्थापित किया गया है जो 380 MW विद्युत उत्पन्न करता है ।

पवन ऊर्जा के लाभ :-

पर्यावरण हितैषी होती है ।
नवीकरणीय ऊर्जा का उत्तम स्रोत ।
विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने में बार – बार खर्चा या लागत न होना ।
पवन ऊर्जा की सीमाएँ :-

पवन ऊर्जा फार्म के लिए अत्यधिक भूमिक्षेत्र की आवश्यकता ।
लगातार 15-20 किमी घंटा पवन गति की आपूर्ति होना ।
अत्यधिक प्रारम्भिक लागत होना ।
पवन चक्की के ब्लेड्स की प्रबंधन लागत अधिक होना ।

वैकल्पिक / गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत :-

प्रौद्योगिकी में उन्नति के साथ ही ऊर्जा की माँग में दिन – प्रतिदिन वृद्धि है । अत : ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की आवश्यकता है ।

गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत उपयोग करने का कारण :-

जीवाश्म ईंधन सीमित मात्रा में उपलब्ध है , यदि वर्तमान दर से हम उनका उपयोग करते रहे तो वे शीघ्र समाप्त हो जायेंगे ।
जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता को कम करने हेतु जिससे कि वे लम्बे समय तक चल सकें ।
पर्यावरण को बचाने व प्रदूषण दर को कम करने हेतु ।

सौर ऊर्जा :-

सूर्य ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत है । सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को सौर ऊर्जा कहते हैं ।

सौर स्थिरांक :-

पृथ्वी के सतह पर प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल पर 1 सेकेण्ड में आने वाली सौर ऊर्जा को सौर स्थिरांक कहते हैं । इसका मान 1.4 kW/m² है । सौर स्थिरांक – 1.4 kJ/s/m² or 1.4 kW/m²

सौर ऊर्जा युक्तियाँ :-

सौर ऊर्जा को ऊष्मा के रूप में एकत्रित करके उपयोग करना ।

सौर कुकर
सौर जल तापक
सौर सैल – सौर ऊर्जा को विद्युत में रूपांतरित करना ।

सौर तापक युक्तियों में :-

काला पृष्ठ अधिक ऊष्मा अवशोषित करता है अतः इन युक्तियों में काले रंग का प्रयोग किया जाता है ।
सूर्य की किरणों फोकसित करने के लिए दर्पणों तथा काँच की शीट का प्रयोग किया जाता है जिससे पौधाघर प्रभाव उत्पन्न हे जाता है तथा उच्च ताप उत्पन्न हो जाता है ।

बाक्स रूपी सौर कुकर :-

ऊष्मारोधी पदार्थ का बक्सा लेकर आंतरिक धरातल तथा दीवारों पर काला पेन्ट करते हैं । बाक्स को काँच की शीट से ढकते हैं । समतल दर्पण को इस प्रकार समायोजित किया जाता है कि अधिकतम सूर्य का प्रकाश परावर्तित होकर बाक्स में उच्चताप बना सके । 2-3 घंटे में बाक्स के अन्दर का ताप 100°C – 140°C तक हो जाता है ।

बाक्स रूपी सौर कुकर के लाभ :-

कोयला / पैट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधनों की बचत ।
प्रदूषण नहीं फैलता ।
खाद्य पदार्थों के पोषक तत्व नष्ट नहीं होते ।
एक से अधिक भोजन एक साथ बनाया जा सकता है ।
बाक्स रूपी सौर कुकर की हानियाँ :-

रात के समय सौर कुकर का उपयोग नहीं किया जा सकता ।
बारिश के समय इसका उपयोग नहीं किया जा सकता ।
सूर्य के प्रकाश का निरंतर समायोजन करना आवश्यक है ताकि यह उसके दर्पण पर सीधा पड़े ।
तलने व बेकिंग हेतु उपयोग नहीं कर सकते ।

सौर सेल :-

सौर सेल सौर ऊर्जा को सीधे विद्युत में रूपान्तरित करते हैं ।

एक प्ररुपी सौर सेल 0.5 से 1V देता है जो लगभग 0.7 W ( विद्युत शक्ति ) उत्पन्न कर सकता है ।

जब बहुत अधिक संख्या में सौर सेलों को संयोजित करते हैं तो यह व्यवस्था सौर पैनल कहलाती है ।

सोलर सैल के ( लाभ ) :-

सौर सेलों के साथ संबद्ध प्रमुख लाभ यह है इनमें कोई भी गतिमान पुरजा नहीं होता , इनका रखरखाव सस्ता है तथा ये बिना किसी फोकसन युक्ति के काफी संतोषजनक कार्य करते हैं ।

सौर सेलों के उपयोग करने का एक अन्य लाभ यह है कि इन्हें सुदूर तथा अगम्य स्थानों में स्थापित किया जा सकता है । तथा यह पर्यावरण हितैषी है ।

सोलर सैल की ( हानियाँ ) :-

उत्पादन की प्रक्रिया महंगी ।
विशिष्ट श्रेणी के सिलिकॉन की उपलब्धता सीमित ।
सौर सेलों को परस्पर संयोजित करने हेतु प्रयुक्त सिल्वर अत्यन्त महंगा ।
सौर सेल के उपयोग :-

मानव निर्मित उपग्रहों में सौर सेलों का उपयोग ।
रेडियो तथा बेतार संचार यंत्रों , सुदूर क्षेत्रों के टी . वी . रिले केन्द्रों में सौर सेल पैनल का उपयोग होता है ।
ट्रेफिक सिग्नलों , परिकलन तंत्र ( Calculator ) तथा बहुत से खिलौनों में सौर सेल का उपयोग ।

समुद्री से ऊर्जा :-

ज्वारीय ऊर्जा
तरंग ऊर्जा
महासागरीय तापीय ऊर्जा

ज्वारीय ऊर्जा :-

ज्वार भाटे में जल के स्तर के चढ़ने और गिरने से ज्वारीय ऊर्जा प्राप्त होती । ज्वारीय ऊर्जा का दोहन सागर के किसी संकीर्ण क्षेत्र पर बांध का निर्माण करके किया जाता है ।

ज्वारीय ऊर्जा की सीमाएँ :- बाँध निर्मित किए जा सकने वाले स्थान सीमित हैं ।

तरंग ऊर्जा :-

समुद्र तट के निकट विशाल तरंगों की गतिज ऊर्जा का प्रयोग कर विद्युत उत्पन्न की जाती है । तरंग ऊर्जा से टरबाइन को घुमाकर विद्युत उत्पन्न करने के लिए उपयोग होता है ।

तरंग ऊर्जा की सीमाएँ :- तरंग ऊर्जा का व्यावहारिक उपयोग वहीं संभव है जहाँ तंरगें अत्यंत प्रबल हों ।

महासागरीय तापीय ऊर्जा :-

ताप में अंतर का उपयोग ( पृष्ठ जल तथा गहराई जल में ताप का अंतर ) सागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण विद्युत संयंत्र ( OTEC ) में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है ।

पृष्ठ के तप्त जल का उपयोग अमोनिया को उबालने में किया जाता है । द्रवों की वाष्प जनित्र के टरबाइन को घुमाकर विद्युत उत्पन्न करती है ।

महासागरीय तापीय ऊर्जा की सीमाएँ :- महासागरीय तापीय ऊर्जा का दक्षतापूर्ण व्यापारिक दोहन अत्यन्त कठिन है ।

भूतापीय ऊर्जा :-

‘ भू ‘ का अर्थ है ‘ धरती ‘ तथा ‘ तापीय ‘ का अर्थ है ‘ ऊष्मा ‘ पृथ्वी के तप्त स्थानों पर भू – गर्भ में उपस्थित ऊष्मीय ऊर्जा को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं ।

जब भूमिगत जल तप्त स्थलों के संपर्क में आता है तो भाप उत्पन्न होती है । जब यह भाप चट्टानों के बीच में फंस जाती ही तो इसका दाब बढ़ जाता है । उच्च दाब पर यह भाप पाइपों द्वारा निकाली जाती है जो टरबाइन को घुमाती है तथा विद्युत उत्पन्न की जाती है ।

भूतापीय ऊर्जा के लाभ :-

इसके द्वारा विद्युत उत्पादन की लागत अधिक नहीं है ।
इससे प्रदूषण नहीं होता ।

भूतापीय ऊर्जा की सीमाएँ :-

भूतापीय ऊर्जा सीमित स्थानों पर ही उपलब्ध है ।
तप्त स्थलों की गहराई में पाइप पहुँचाना मुश्किल एवं महँगा होता है ।
न्यूजीलैंड तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में भूतापीय ऊर्जा पर आधारित कई विद्युत शक्ति संयंत्र कार्य कर रहे हैं ।

तप्त स्थल :-

भौमिकीय परिवर्तनों के कारण भूपर्पटी में गहराइयों पर तप्त क्षेत्रों में पिघली चट्टानें ऊपर धकेल दी जाती हैं जो कुछ क्षेत्रों में एकत्र हो जाती हैं । इन क्षेत्रों को तप्त स्थल कहते है ।

नाभिकीय ऊर्जा :-

नाभिकीय अभिक्रिया के दौरान मुक्त होने वाली ऊर्जा नाभिकीय ऊर्जा कहलाती है ।

यह ऊर्जा दो प्रकार की अभिक्रियाओं द्वारा प्राप्त की जा सकती है :-

नाभिकीय विखंडन
नाभिकीय संलयन

नाभिकीय विखंडन :-

विखंडन का अर्थ है टूटना । नाभिकीय विखंडन वह प्रक्रिया है जिसमें भारी परमाणु ( जैसे :- यूरेनियम , प्लूटोनियम अथवा थोरियम ) के नाभिक को निम्न उर्जा न्यूट्रान से बमबारी कराकर हल्के नाभिकों में तोड़ा जाता है । इस प्रक्रिया में विशाल मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है ।

यूरेनियम – 235 का प्रयोग छड़ों के रूप में नाभिकीय संयंत्रों में ईंधन की तरह होता है ।

कार्यशैली :-

नाभिकीय संयंत्रों में , नाभिकीय ईंधन स्वपोषी विखंडन श्रृंखला अभिक्रिया का एक भाग होते हैं , जिसमें नियंत्रित दर पर ऊर्जा मुक्त होती है । इस मुक्त ऊर्जा का उपयोग भाप बनाकर विद्युत उत्पन्न करने में किया जाता है ।

नाभिकीय विद्युत संयंत्र :-

तारापुर ( महाराष्ट्र )
राणा प्रताप सागर ( राजस्थान )
कलपक्कम ( तमिलनाडु )
नरौरा ( उत्तर प्रदेश )
काकरापार ( गुजरात )
कैगा ( कर्नाटक )

नाभिकीय संलयन :-

दो हल्के नाभिकों ( सामान्यतः हाइड्रोजन ) को जोड़कर एक भारी नाभिक ( हीलियम ) बनाना जिसमें भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न हो , नाभिकीय संलयन कहलाती है ।

₁²H + ₁²H → ₂³He + ₀¹n + ऊष्मा

नाभिकीय संलयन हेतु अत्याधिक ताप व दाब की आवश्यकता होती है । सूर्य तथा अन्य तारों की विशाल ऊर्जा का स्रोत नाभिकीय संलयन है । हाइड्रोजन बम भी ‘ नाभिकीय संलयन अभिक्रिया ‘ पर आधारित होता है ।

नाभिकीय ऊर्जा के लाभ :-

नाभिकीय ईंधन की अल्प मात्रा के विखंडन से ऊर्जा की अत्याधिक मात्रा मुक्त होती है ।
CO₂ जैसी ग्रीन हाउस गैसें उत्पन्न नहीं होती ।

नाभिकीय ऊर्जा के सीमाएँ :-

नाभिकीय विद्युत शक्ति संयंत्रों के प्रतिष्ठापन की अत्याधिक लागत है ।
नाभिकीय विकिरण के रिसाव का डर बना रहता है ।
नाभिकीय अपशिष्टों के समुचित भंडारण तथा निपटारा न होने की अवस्था में पर्यावरण संदूषण का खतरा ।
यूरेनियम की सीमित उपलब्धता ।

पर्यावरण विषयक सरोकार :-

किसी भी प्रकार की ऊर्जा का अधिक प्रयोग करने से वातावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है । अत : हमें ऐसे ऊर्जा स्रोत का ध्यान करना चाहिए जिससे , ऊर्जा प्राप्त करने में सरलता हो , सस्ता हो , प्रदूषण मुक्त हो तथा , ऊर्जा स्रोत से ऊर्जा प्राप्त करने की उपलब्ध प्रौद्योगिकी की दक्षता हो ।

दूसरे शब्दों में , ऊर्जा का कोई भी स्रोत पूर्णतः प्रदूषण मुक्त नहीं है । हम यह कह सकते हैं कि कोई स्रोत दूसरे स्रोत की अपेक्षा अधिक स्वच्छ है ।

उदाहरण :- सौर सेल का वास्तविक प्रचालन प्रदूषण मुक्त है परन्तु यह हो सकता है कि युक्ति के संयोजन में पर्यावरणीय क्षति हुई हो ।

अनवीकरणीय स्रोत :-

इस प्रकार के स्रोतों को जो किसी न किसी दिन समाप्त हो जाएँगे , उन्हें ऊर्जा के समाप्य स्रोत अथवा अनवीकरणीय स्रोत कहते हैं ।

नवीकरणीय स्रोत :-

इस प्रकार के ऊर्जा स्रोत जिनका पुनर्जनन हो सकता है , उन्हें ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत कहते हैं ।


Class 10 science Chapter 14  Important Question Answer

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01. हम ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों कि ओर क्यों ध्यान दे रहे है ?
उत्तर –
हम जानते है कि जीवाश्मी ईंधन ऊर्जा के अनवीकरणीय स्रोत है | अतः इन्हें बचाने कि आवश्यकता है | पृथ्वी के अंदर कोयले , पेट्रोलियम , प्राकृतिक गैस आदि सीमित मात्रा में मौजूद है | यदि हम इनका प्रयोग इसी प्रकार करते रहे तो ये शीघ्र ही समाप्त हो जाएंगे | अतः हमें ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों कि ओर ध्यान देना चाहिए |

02. भूतापीय ऊर्जा क्या है ?
उत्तर –
जब भूमिगत जल तप्त स्थलों के संपर्क में आता है तो भाप उत्पन्न होती है | जब यह भाप चट्टानों के बीच फंस जाती हैं तो इसका दाब बढ़ जाता है | उच्च दाब पर यह भाप पाइपों द्वारा निकाल ली जाती है, यह भाप विद्युत जनरेटर की टरबाइन को घुमती है तथा विद्युत उत्पन्न की जाती है | इन तप्त स्थलों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा भूतापीय ऊर्जा कहलाती है |

03. सौर कूकर के लिए कौन सा दर्पण – अवतल , उत्तल , अथवा समतल – सर्वाधिक उपयुक्त है ?
उत्तर –
सौर कूकर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त दर्पण अवतल दर्पण है , क्योंकि यह एक अभिसारी दर्पण है | जो सूर्य कि किरणों को एक बिन्दु पर फोकसित करता है ,जिसके कारण शीघ्र ही इसका ताप और बढ़ जाता है |

04. नाभिकीय ऊर्जा का क्या महत्व है ?
उत्तर –
नाभिकीय ऊर्जा से उत्पन्न ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहते है | इस प्रकिया के द्वारा अत्याधिक मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है | इस ऊर्जा का उपयोग भाप बनाकर विद्युत् उत्पन्न करने में किया जाता है |

05. क्या कोई ऊर्जा स्रोत प्रदुषण मुक्त हो सकता है ? क्यों अथवा क्यों नही ?
उत्तर
नही , ऐसा कोई ऊर्जा का स्रोत नही है जो प्रदुषण मुक्त हो | सौर सेल हालाँकि प्रदुषण मुक्त है परन्तु उस युक्ति को जुटाने में पर्यावरण क्षति ग्रस्त हो सकता है |

 


Class 10 science Chapter 14  Important Objective Question Answer (MCQ)

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1. प्राचीन काल में ऊष्मीय ऊर्जा का सबसे अधिक सामान्य स्त्रोत क्या था ?
(a) LPG
(b) जैव गैस
(c) लकड़ी
(d) कोयला

► (c) लकड़ी

2. उत्तम ऊर्जा का स्त्रोत कौन-सा होता है ?
(क) जो प्रति एंकाक आयतन अथवा प्रति एंकाक द्रव्यमान अधिक कार्य करे
(b) सरलता से सुलभ हो सके
(c) भंडारण में आसान तथा सस्ता हो
(d) उपरोक्त सभी

► (d) उपरोक्त सभी

3. जीवाश्मी ईंधन क्या है ?
(a) परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत
(b) ऊर्जा के समाव्य स्त्रोत
(c) ऊर्जा के अनवीकरण स्त्रोत
(d) उपरोक्त सभी

► (d) उपरोक्त सभी

4. जीवाश्मी ईंधनों के दहन से कौन-सी प्रदूषक गैस उत्पन्न होती है ?
(a) कॉर्बन मोनोऑक्साइड
(b) सल्फर डाइऑक्साइड
(c) नाइट्रोजन डाइऑक्साइड
(d) उपरोक्त सभी

► (d) उपरोक्त सभी

5. निम्नलिखित में से जीवाश्मी ईंधन कौन-से हैं ?
(a) कोयला
(b) पेट्रोलियम
(c) जल
(d) (a) और (b) दोनों

► (d) (a) और (b) दोनों
6. बहते हुए पानी में किस प्रकार की ऊर्जा निहित होती है ?
(a) नाभिकीय ऊर्जा
(b) ऊष्मीय ऊर्जा
(c) गतिज ऊर्जा
(d) यांत्रिक ऊर्जा

► (c) गतिज ऊर्जा

7. डायनेमो किससे विद्युत उत्पादित करता है ?
(a) गतिज ऊर्जा
(b) यांत्रिक ऊर्जा
(c) स्थितिज ऊर्जा
(d) ऊष्मीय ऊर्जा

► (b) यांत्रिक ऊर्जा

8. किसी ऊँचाई पर स्थित जल में कैसी ऊर्जा होती है ?
(a) गतिज ऊर्जा
(b) ऊष्मीय ऊर्जा
(c) नाभिकीय ऊर्जा
(d) स्थितिज ऊर्जा

► (d) स्थितिज ऊर्जा

9. जल विद्युत संयंत्र में स्थितिज ऊर्जा का परिवर्तन किस प्रकार की ऊर्जा में होता है ?
(a) विद्युत ऊर्जा
(b) यांत्रिक ऊर्जा
(c) रासायनिक ऊर्जा
(d) गतिज ऊर्जा

► (a) विद्युत ऊर्जा

10. जल विद्युत संयंत्र में ऊर्जा का स्त्रोत क्या है ?
(a) सूर्य का प्रकाश
(b) पेट्रोलियम उत्पाद
(c) कोयला
(d) जल

► (d) जल

11. जल विद्युत उत्पन्न करने के लिए बड़े जलाशयों में जल एकत्र करने के लिए क्या बनाए जाते हैं ?
(a) झरने
(b) तालाब
(c) स्तंभ
(d) बाँध

► (d) बाँध

12. भारत में हमारी ऊर्जा की माँग के चौथाई भाग की पूर्ति किस संयंत्र दवारा होती है ?
(a) तापीय विदयुत संयंत्र
(b) जल विद्युत संयंत्र
(c) पवन ऊर्जा
(d) नाभिकीय ऊर्जा

► (b) जल विद्युत संयंत्र

13. बाँधों के निर्माण के साथ कौन-कौन सी समस्याएँ जुड़ी हैं ?
(a) कृषियोग्य भूमि तथा मानव आवास नष्ट हो जाते हैं
(b) बड़े-बड़े पारिस्थितिक तंत्र नष्ट हो जाते हैं
(c) पेड़-पौधे सड़ने पर मेथेन गैस उत्पन्न करते हैं
(d) उपरोक्त सभी

► (d) उपरोक्त सभी

14. निम्नलिखित में से कौन नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोत है ?
(a) जल विद्युत ऊर्जा
(b) तापीय विद्युत ऊर्जा
(c) नाभिकीय ऊर्जा
(d) (b) और (c) दोनों

► (a) जल विद्युत ऊर्जा

15. टिहरी बाँध कौन-सी नदी पर बना हुआ है ?
(a) गंगा नदी
(b) सतलुज नदी
(c) नर्मदा नदी
(d) कावेरी नदी

► (a) गंगा नदी

16. सरदार सरोवर बाँध कौन-सी नदी पर है ?
(a) गंगा नदी
(b) सतलुज नदी
(c) नर्मदा नदी
(d) कावेरी नदी

► (c) नर्मदा नदी

17. जब लकड़ी को वायु की सीमित आपूर्ति में जलाते हैं तो उसमें अवशेष के रूप में क्या रह जाता है ?
(a) चारकोल
(b) वुड गैस
(c) पेट्रोल
(d) जल

► (a) चारकोल

18. चारकोल की क्या विशेषताएँ हैं ?
(a) बिना ज्वाला के जलता है
(b) कम धुआँ निकलता है
(c) अधिक ऊष्मा उत्पन्न करता है
(d) उपरोक्त सभी

► (d) उपरोक्त सभी


 

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