Class 10 Science Chapter 11 Notes in Hindi : covered science Chapter 11 easy language with full details details & concept इस अद्याय में हमलोग जानेंगे कि – मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार क्या है किसे कहते है, मानव नेत्र के क्या क्या भाग व्होटे है, एवं उनके कार्य है, मोतियाबिंद क्या है, निकट – दृष्टि दोष किसे कहते है, दीर्घ – दृष्टि दोष दीर्घ किसे कहते है, प्रिज्म किसे कहते है, विचलन क्या है, इंद्रधनुष कैसे बनता है,
Class 10 Science Chapter 11 Notes in Hindi full details
category | Class 10 Science Notes in Hindi |
subjects | science |
Chapter Name | Class 10 human eye and colorful world (मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार) |
content | Class 10 Science Chapter 11 Notes in Hindi |
class | 10th |
medium | Hindi |
Book | NCERT |
special for | Board Exam |
type | readable and PDF |
NCERT class 10 science Chapter 11 notes in Hindi
विज्ञान अद्याय 11 सभी महत्पूर्ण टॉपिक तथा उस से सम्बंधित बातों का चर्चा करेंगे।
विषय – विज्ञान | अध्याय – 11 |
human eye and colorful world
मानव नेत्र :- यह एक अत्यंत मूल्यावान एवं सुग्राही ज्ञानेंद्रिय है । मानव नेत्र एक कैमरे के भांति कार्य करता है । जो हमें चारों ओर के रंगबिरंगे संसार को देखने योग्य बनाता है । यह दृष्टिपटल पर उल्टा , वास्तविक प्रतिबिंब बनाता है । यह नेत्र गोलक में स्थित होते हैं । नेत्र गोलक का व्यास लगभग 2.3 cm होता है ।
दृढ़ पटल :- मनुष्य का नेत्र लगभग एक खोखले गोले के समान होता है । इसकी सबसे बाहरी पर्त , अपारदर्शी , श्वेत तथा दृढ़ होती है । इसे दृढ़ पटल कहते हैं । इसके द्वारा नेत्र के भीतरी भागों की सुरक्षा होती है ।
रक्तक पटल :- दृढ़ पटल के भीतरी पृष्ठ से लगी काले रंग की एक झिल्ली होती है , जिसे रक्तक पटल कहते हैं । यह नेत्र के भीतरी भागों में परावर्तन रोकती है ।
श्वेत मंडल / कॉर्निया :- नेत्र के अग्र भाग पर एक पारदर्शी झिल्ली होती है जिसे श्वेत मंडल या कॉर्निया कहते है । नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश किरणों का अधिकांश अपवर्तन कॉर्निया के बाहरी पृष्ठ पर होता है ।
नेत्र गोलक :- इसकी आकृति लगभग गोलाकार होती है । इसका व्यास लगभग 2.3cm होती है ।
लेंस :- यह एक उत्तल लेंस है जो प्रकाश को रेटिना पर अभिसरित करता है । यह एक रेशेदार जहेलीवत पदार्थ का बना होता है । लेंस केवल विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को रेटिना पर क्रेन्द्रित करने के लिए आवश्यक फोकस दूरी में सूक्ष्म समायोजन करता है ।
परितारिका :- कॉर्निया के पीछे एक गहरा पेशीय डायफ्राम होता है जो पुतली के आकार को नियंत्रित करता है ।
पुतली :- यह परिवर्ती द्धारक की भांति कार्य करती है । जिसका साइज परितारिका की सहायता से बदला जाता है । यह आंख में प्रवेश होने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है ।
अभिनेत्र लैंस :- यह एक उत्तल लैस है । जो प्रकाश को रेटिना पर अभिसारित करता है और वस्तु का उल्टा तथा वास्तविक प्रतिबिंब बनाता है । यह एक रेशेदार जेलीवत पदार्थ का बना होता है ।
पक्ष्भामी पेशियां :- अभिनेत्र लैंस की वक्रता को नियंत्रित करती है । अभिनेत्र लैंस की वक्रता में परिवर्तन होने पर इसकी फोकस दूरी भी परिवर्तित हो जाती है ताकि हम वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिंब देख सकें ।
रेटीना :- यह एक कोमल सूक्ष्म झिल्ली है जिसमें प्रकाश सुग्राही कोशिकाएं अधिक संख्या में पाई जाती हैं । प्रदीप्त होने पर प्रकाश – सुग्राही कोशिकाएँ सक्रिय हो जाती हैं तथा विद्युत सिग्नल पैदा करती हैं । ये सिग्नल दृक् तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचा दिए जाते हैं । मस्तिष्क इन सिग्नलों की व्याख्या करता है और हम वस्तुओं को देख पाते हैं ।
दूर बिंदु :- वह दूरतम बिंदु जिस तक कोई नेत्र वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है , नेत्र का दूर – बिंदु कहलाता है । सामान्य नेत्र के लिए यह अनंत दूरी पर होता है ।
निकट बिंदु :- वह न्यूनतम दूरी जिस पर रखी कोई वस्तु बिना तनाव के अत्यधिक स्पष्ट देखी जा सकती है , उसे नेत्र का निकट बिंदू कहते हैं ।
समंजन क्षमता :-
अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है समंजन कहलाती है ।
सुस्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी :-
किसी सामान्य दृष्टि के कारण वयस्क के लिए निकट बिंदू आँख से लगभग 25cm की दूरी पर होता है । इसे सुस्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी भी कहते हैं ।
दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन
मोतियाबिंद :-
अधिक उम्र के कुछ व्यक्तियों के नेत्र का क्रिस्टलीय लेंस दूधिया तथा धुँधला हो जाता है । इस स्थिति को मोतियाबिंद कहते हैं । इसके कारण नेत्र की दृष्टि में कमी या पूर्ण रूप से दृष्टि क्षय हो जाती है ।
मोतियाबिंद की शल्य चिकित्सा के बाद दृष्टि का वापस लौटना संभव होता है ।
निकट – दृष्टि दोष :-
इस दोष में व्यक्ति निकट रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु दूर रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता । ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का दूर – बिंदु अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता है ।
दोष उत्पन्न होने के कारण :-
अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक होना ।
नेत्र गोलक का लंबा हो जाना ।
निवारण :-
इस दोष को किसी उपयुक्त क्षमता के अवतल लेंस ( अपसारी लेंस ) के उपयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता है । उपयुक्त क्षमता का अवतल लेंस वस्तु के प्रतिबिंब को वापस दृष्टिपटल ( रेटिना ) पर ले आता है , तथा इस प्रकार इस दोष का संशोधन हो जाता है ।
दीर्घ – दृष्टि दोष दीर्घ :-
दृष्टि दोषयुक्त कोई व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता । ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का निकट – बिंदु सामान्य निकट बिंदु ( 25cm ) से दूर हट जाता है ।
दोष उत्पन्न होने के कारण :-
अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक हो जाना ।
नेत्र गोलक का छोटा हो जाना ।
निवारण :-
इस दोष को उपयुक्त क्षमता के अभिसारी लेंस ( उत्तल लेंस ) का उपयोग करके संशोधित किया जा सकता है । उत्तल लेंस युक्त चश्मे दृष्टिपटल पर वस्तु का प्रतिबिंब फोकसित करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त क्षमता प्रदान करते हैं ।
जरा – दूरदृष्टिता :-
आयु में वृद्धि होने के साथ – साथ मानव नेत्र में समंजन – क्षमता घट जाती है । अधिकांश व्यक्तियों का निकट – बिंदु दूर हट जाता है । इस दोष को जरा – दूरदृष्टिता कहते हैं ।
दोष उत्पन्न होने के कारण :-
यह पक्ष्माभी पेशियों के धीरे – धीरे दुर्बल होने तथा क्रिस्टलीय लेंस के लचीलेपन में कमी आने के कारण उत्पन्न होता है ।
निवारण :-
उत्तल लेंस के प्रयोग से ।
कभी – कभी किसी व्यक्ति के नेत्र में दोनों ही प्रकार के दोष निकट – दृष्टि तथा दूर – दृष्टि दोष होते हैं ऐसे व्यक्तियों के लिए प्रायः द्विफोकसी लेंसों की आवश्यकता होती ऊपरी भाग अवतल लेंस और निचला भाग उत्तल लेंस होता है ।
आजकल संस्पर्श लेंस ( Contact lens ) अथवा शल्य हस्तक्षेप द्वारा दृष्टि दोषों का संशोधन संभव है ।
दोनों नेत्रों का सिर पर सामने की ओर स्थित होने का लाभ :-
इससे हमें त्रिविम चाक्षुकी का लाभ मिलता है ।
इससे हमारा दृष्टि – क्षेत्र विस्तृत हो जाता है ।
इससे हम धुंधली चीजों को भी देख पाते हैं ।
प्रिज्म से प्रकाश अपवर्तन :-
प्रिज्म के दो त्रिभुजाकार आधार तथा तीन आयताकार पार्श्व – पृष्ठ होते हैं ।
प्रिज्म कोण :-
प्रिज्म के दो पार्श्व फलकों के बीच के कोण को प्रिज्म कोण कहते हैं ।
विचलन कोण :-
आपतित किरण एवं निर्गत किरण के बीच के कोण को विचलन कोण कहते हैं ।
काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण :-
सूर्य का श्वेत प्रकाश जब प्रिज्म से होकर गुजरता है तो प्रिज्म श्वेत प्रकाश को सात रंगों की पट्टी में विभक्त कर देता है । यह सात रंग है :- बैंगनी , जामुनी , नीला , हरा , पीला , नारंगी तथा लाल । प्रकाश के अवयवी वर्गों के इस बैंड को स्पेक्ट्रम ( वर्णक्रम ) कहते हैं । प्रकाश के अवयवी वर्गों में विभाजन को विक्षेपण कहते हैं ।
इंद्रधनुष :-
इंद्रधनुष वर्षा के पश्चात आकाश में जल के सूक्ष्म कणों में दिखाई देने वाला प्राकृतिक स्पेक्ट्रम है । यह वायुमंडल में उपस्थित जल की बूँदों द्वारा सूर्य के प्रकाश के परिक्षेपन के कारण प्राप्त होता है । इंद्रधनुष सदैव सूर्य के विपरीत दिशा में बनता है ।
जल की सूक्ष्म बूंदें छोटे प्रिज्मों की भाँति कार्य करती है । सूर्य के आपतित प्रकाश की ये बूंदें अपवर्तित तथा विक्षेपित करती हैं , तत्पश्चात इसे आंतरिक परावर्तित करती हैं , अंततः जल की बूँद से बाहर निकलते समय प्रकाश को पुनः अपवर्तित करती है । प्रकाश के परिक्षेपण तथा आंतरिक परावर्तन के कारण विभिन्न वर्ण प्रेक्षक के नेत्रों तक पहुँचते हैं ।
किसी प्रिज्म से गुजरने के पश्चात , प्रकाश के विभिन्न वर्ण , आपतित किरण के सापेक्ष अलग – अलग कोणों पर झुकते हैं ।
लाल प्रकाश सबसे कम झुकता है जबकि बैंगनी प्रकाश सबसे अधिक झुकता है ।
आइजक न्यूटन :-
आइजक न्यूटन ने सर्वप्रथम सूर्य का स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए काँच के प्रिज्म का उपयोग किया । एक दूसरा समान प्रिज्म उपयोग करके उन्होंने श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम के वर्गों को और अधिक विभक्त करने का प्रयत्न किया । किंतु उन्हें और अधिक वर्णों नहीं मिल पाए ।
फिर उन्होंने एक दूसरा सर्वसम प्रिज्म पहले प्रिज्म के सापेक्ष उल्टी स्थिति में रखा । उन्होंने देखा कि दूसरे प्रिज्म से श्वेत प्रकाश का किरण पुंज निर्गत हो रहा है । इससे न्यूटन ने यह निष्कर्ष निकाला कि सूर्य का प्रकाश सात वर्गों से मिलकर बना है ।
वायुमंडलीय अपवर्तन :-
वायुमंडलीय अस्थिरता के कारण प्रकाश का अपवर्तन वायुमंडलीय अपवर्तन कहलाता है ।
वायुमंडलीय अपवर्तन के प्रभाव :-
तारों का टिमटिमाना
अग्रिम सूर्योदय तथा विलम्बित सूर्यास्त
तारों का वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होना ।
गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति का परिवर्तित होना ।
1. तारों का टिमटिमाना :- दूर स्थित तारा हमें प्रकाश के बिंदु स्रोत के समान प्रतीत होता है । चूंकि तारों से आने वाली प्रकाश किरणों का पथ थोड़ा – थोड़ा परिवर्तित होता रहता है , अत : तारे की आभासी स्थिति विचलित होती रहती है तथा आँखों में प्रवेश करने वाले तारों के प्रकाश की मात्रा झिलमिलाती रहती है । जिसके कारण कोई तारा कभी चमकीला प्रतीत होता है तो कभी धुंधला , जो कि टिमटिमाहट का प्रभाव है ।
2. अग्रिम सूर्योदय तथा विलम्बित सूर्यास्त :- वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्य हमें वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनट पूर्व दिखाई देने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनट पश्चात् तक दिखाई देता रहता है ।
3. तारों का वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होना :- पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के पश्चात् पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने तक तारे का प्रकाश निरंतर अपवर्तित होता जाता है । वायुमंडलीय अपवर्तन उसी माध्यम में होता है जिसका क्रमिक परिवर्ती अपवर्तनांक हो । क्योंकि वायुमंडल तारे के प्रकाश को अभिलंब की ओर झुका रहता है अतः क्षितिज के निकट देखने पर कोई तारा अपनी वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होता है ।
04. गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति का परिवर्तित होना :- आग के तुरंत ऊपर की वायु अपने ऊपर की वायु को तुलना में अधिक गरम हो जाती है । गरम वायु अपने ऊपर की ठंडी वायु की तुलना में कम सघन होती है तथा इसका अपवर्तनांक ठंडी वायु की अपेक्षा थोड़ा कम होता है । क्योंकि अपवर्तक माध्यम ( वायु ) की भौतिक अवस्थाएँ सिथर नहीं हैं । इसलिए गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति परिवर्तित होती रहती है ।
प्रकाश का प्रकीर्णन :-
टिंडल प्रभाव :-
जब कोई प्रकाश किरण का पुंज वायुमण्डल के महीन कणों जैसे धुआँ , जल की सूक्ष्म बूंदें , धूल के निलंबित कण तथा वायु के अणु से टकराता है तो उस किरण पुंज का मार्ग दिखाई देने लगता है । कोलाइडी कणों के द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन की परिघटना टिंडल प्रभाव उत्पन्न करती है ।
उदाहरण :-
जब धुएँ से भरे किसी कमरे में किसी सूक्ष्म छिद्र से कोई पतला प्रकाश किरण पुंज प्रवेश करता है तो हम टिंडल प्रभाव देख सकते हैं ।
जब किसी घने जंगल के वितान से सूर्य का प्रकाश गुजरता है तो भी टिन्डल प्रभाव को देखा जा सकता है ।
Rayleigh का नियम :-
प्रकीर्णित a=1/λ⁴
λ- प्रकाश किरण की तरंग दैर्ध्य
प्रकीर्णित प्रकाश का वर्णन किस पर निरभर करता है :-
प्रकीर्णित प्रकाश का वर्णन प्रकीर्णन न करने वाले कणों के आकार पर निर्भर करता है । जैसे :;
अत्यंत सूक्ष्म कण मुख्य रूप से नीले प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं ।
बड़े आकार के कण अधिक तरंगदैर्ध्य के प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं ।
यदि प्रकीर्णन करने वाले कणों का साइज बहुत अधिक है तो प्रकीर्णित प्रकाश श्वेत भी प्रतीत हो सकता है ।
ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते ?
तारों की अपेक्षा पृथ्वी के काफी नजदीक होते हैं । इसलिए उसे प्रकाश का बड़ा स्रोत माना जाता है । यदि गृह की प्रकाश के बिंदु स्रोतों का संग्रह माने तो प्रत्येक स्रोत द्वारा , हमारे आँखों में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा में कुल परिवर्तत का औसत मान शून्य होगा , जिस कारण ग्रह टिमटिमाते नहीं ।
‘ खतरे ‘ का संकेत लाल रंग का क्यों होता है ?
खतरे ‘ के संकेत का प्रकाश लाल रंग का होता है । लाल रंग कुहरे या धुएँ से सबसे कम प्रकीर्ण होता है । इसलिए यह दूर से देखने पर भी दिखाई देता है ।
स्वच्छ आकाश का रंग नीला क्यों होता है ?
वायुमंडल में वायु के अणु तथा अन्य सूक्ष्म कणों का आकार दृश्य प्रकाश की तरंगदैर्ध्य के प्रकाश की अपेक्षा छोटा है । ये कण कम तरंगदैर्ध्य के प्रकाश को प्रकीर्णित करने में अधिक प्रभावी हैं ।
लाल वर्ण के प्रकाश की तरंगदैर्ध्य नीले प्रकाश की अपेक्षा 1.8 गुनी है ।
अतः जब सूर्य का प्रकाश वायुमंडल से गुजरता है , वायु के सूक्ष्म कण लाल रंग की अपेक्षा नीले रंग को अधिक प्रबलता से प्रकीर्ण करते हैं । प्रकीर्णित हुआ नीला प्रकाश हमारे नेत्रों में प्रवेश करता है ।
ऊँचाई पर उड़ते हुए यात्रियों को आकाश काला क्यों प्रतीत होता है ?
क्योंकि इतनी ऊँचाई पर प्रकीर्णन सुस्पष्ट नहीं होता ।
बादल सफेद क्यों प्रतीत होते हैं ?
बादल सूक्ष्म पानी की बूंदों से बने होते हैं ये सूक्ष्म बूंदों का आकार दृश्य किरणों की तरंगदैर्ध्य की सीमा से अधिक है । इसलिए जब श्वेत प्रकाश इन कणों से टकराता है तो सभी दिशा में परावर्तित या प्रकीर्ण हो जाता है । क्योंकि श्वेत प्रकाश के सभी रंग परावर्तित या प्रकीर्ण अधिकतम समान रूप से होते हैं । इसलिए हमें श्वेत रंग ही दिखाई देता है ।
Class 10 science Chapter 11 Important Question Answer
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01. नेत्रा की समंजन क्षमता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
मानव को दूर तथा पास की वस्तुएँ पूर्णत: देखते के लिए नेत्र सुनियोजित करते पड़ते है | इस प्रकार मानव के अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिससे वह अपनी फोकस दुरी कोण सुनियोजित कर लेता है , समाजंन क्षमता कहलाती है |
02. अंतिम पंक्ति में बैठे किसी विद्यार्थी को श्यामपट्ट पढ़ने में कठिनाई होती है। यह विद्यार्थी किस दृष्टि दोष से पीडि़त है? इसे किस प्रकार संशोधित किया जा सकता है?
उत्तर :
इस विद्यार्थी को निकट – दृष्टि दोष है निकट दृष्टि दोष ( मायोपिया ) को किसी उपयुक्त क्षमता के अवतल लेंस द्वारा संशोधित किया जाता है |
03. सामान्य नेत्र 25 cm से निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर :
मानव की सुस्पष्ट देखने की न्यूनतम दुरी 25cm है | 25cm से कम दुरी पर रखी हुई वस्तु से टकरकार प्रतिबिंब हुए प्रकाश की किरणों का दृष्टिपटल पर वस्तु सुस्पष्ट नहीं दिखाई देगी | क्योंकि मानव नेत्र की क्षमता 25cm से बढाई नहीं जा सकता है |
04. जब हम नेत्रा से किसी वस्तु की दूरी को बढ़ा देते हैं तो नेत्र में प्रतिबिंब-दूरी का क्या होता है?
उत्तर :
प्रतिबिंब दूरी सदैव एक जैसी रहती है | इसका कारण है कि वस्तु की दुरी मानव नेत्र के लेंस की फोकस दुरी इस प्रकार समायोजित हो जाती है जिससे प्रतिबिंब दृष्टि पटल पर ही बने |
05. तारे क्यों टिमटिमाते हैं?
उत्तर :
पृथ्वी के वायुमंडल का अपवर्तनांक निरंतर परिवर्तित होता रहता है | आँखों में प्रवेश करने वाला तारों का प्रकाश निरंतर अपवर्तन के कारण अनियमित रहता है एवं उस झिलमिलाहट के कारण तारे टिमटिमाते हुए प्रतीत होते है |
06. व्याख्या कीजिए कि ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते ?
उत्तर :
ग्रहों से पृथ्वी की दुरी काफी कम है | ग्रह प्रकाश के भंडार होते है | जो प्रकाश किरणें ग्रहों से आती है उनमें अपवर्तन नहीं होता है | निकटता व प्रकाश का भंडार होने के साथ – साथ उनकी स्थिति में परिवर्तन नहीं होता अत: वे टिमटिमाते हुए प्रतीत नहीं होते |
07. सूर्योदय के समय सूर्य रक्ताभ क्यों प्रतीत होता है?
उत्तर :
सूर्योदय अथवा सूर्यास्त के समय सूर्य क्षितिज पर होता है | उस स्थिति में सूर्य की किरणें पहले पृथ्वी के वायुमंडल में वायु की मोटी परतों तक पहुँचती है उसके पश्चात् हमारी आँखों तक | कम तंरग दैधर्य के प्रकाश के अधिकतर भाग का वायुमंडल के कणों द्वारा प्रकीर्णन हो जाता है | इस प्रकार केवल लंबी प्रकाश किरणें (लाल) हमारे नेत्रों में प्रवेश कर पाती है और हमें सूर्य रक्ताभ प्रतीत होती है |
Class 10 science Chapter 11 Important Objective Question Answer (MCQ)
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Q1. जो नेत्र निकट स्थित वस्तु को साफ नहीं देख सकता उस नेत्र में होता है
A.दूर दृष्टिदोष
B.निकट दृष्टि दोष
C.जरा दृष्टिदोष
D.वर्णांधता
Ans: निकट दृष्टि दोष
Q2. चन्द्रमा पर खड़े अंतरिक्ष यात्री को आकाश प्रतीत होता है
A.नीला
B.उजला
C.लाल
D.काला
Ans: काला
Q3. निकट दृष्टिदोष का निवारण किस लेंस से होता है?
A.उत्तल
B.अवतल
C.बाइफोकल
D.सिलिन्ड्रिकल
Ans: अवतल
Q4. स्पेक्ट्रम में किस रंग की किरण का झुकाव अधिक होता है?
A.लाल
B.पीला
C.बैंगनी
D.हरा
Ans: बैंगनी
Q5. प्रकाश के किस रंग का तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होता है?
A.बैंगनी
B.हरा
C.लाल
D.पीला
Ans: लाल
Q6. मानव नेत्र जिस भाग पर किसी वस्तु का प्रतिबिंब है, वह है
A.कॉर्निया
B.परितारिका
C.पुतली
D.दृष्टि पटल
Ans: दृष्टि पटल
Q7. किसी वस्तु का प्रतिबिंब आँख के जिस भाग पर पड़ता है, वह है?
A.कॉर्निया
B.रेटिना
C.पुतली
D.आइरिस
Ans: रेटिना
Q8. मानव नेत्र में किस प्रकार का लेंस पाया जाता है?
A.उत्तल
B.अवतल
C.वलयाकार
D.बाइफोकल
Ans: उत्तल
Q9. स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए किसका उपयोग होता है?
A.काँच की सिल्ली
B.अवतल दर्पण
C.उत्तल लेंस
D.प्रिज्म
Ans: प्रिज्म
Q10. दृश्य प्रकाश में किस वर्ण का तरंगदैर्घ्य अधिकतम होता है?
A.बैंगनी
B.लाल
C.नीला
D.पीला
Ans: लाल
Q11. सामान्य नेत्र के लिए सुस्पष्ट दर्शन की न्यूनतम दूरी होती है
A.25 m
B.2.5 m
C.25 cm
D.2.5 cm
Ans: 25 cm
Q12. मानव नेत्र जिस भाग पर किसी वस्तु का प्रतिबिंब बनाते हैं वह है
A.कॉर्निया
B.परितारिका
C.पुतली
D.दृष्टिपटल
Ans: दृष्टिपटल
Q13. मानव नेत्र, अभिनेत्र लेंस की फोकस-दूरी समायोजित कर विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को फोकसित कर सकता है। ऐसा हो पाने का कारण है
A.जरा-दूरदृष्टिता
B.समंजन
C.निकट-दृष्टिता
D.दीर्घ-दृष्टिता
Ans: समंजन
Q14. अभिनेत्र लेंस की फोकस-दूरी में परिवर्तन किया जाता है
A.परितारिका द्वारा
B.पुतली द्वारा
C.दृष्टिपटल द्वारा
D.पक्ष्माभी पेशियों द्वारा
Ans: पक्ष्माभी पेशियों द्वारा
Q15. एक स्वस्थ आँख के दूरी बिन्दु होता है
A.25 सेमी
B.शून्य
C.250 सेमी
D.अनंत से 25 सेमी
Ans: अनंत से 25 सेमी
Q16. किस दृष्टि दोष को अवतल और उत्तल दोनों लेंसों से बने द्विफोकसी लेंस द्वारा संशोधित किया जा सकता है?
A.निकट दृष्टि दोष
B.दीर्घ-दृष्टि दोष
C.जरा-दूर दृष्टिता
D.मोतियाबिंद
Ans: जरा-दूर दृष्टिता
Q17. कैमरे की तरह नेत्र में प्रवेश करते प्रकाश के परिमाण को नियंत्रित करता है
A.कॉर्निया
B.लेंस
C.पुतली
D.आइरिस
Ans: आइरिस
Q18. मानव नेत्र में प्रकाश किस रास्ते प्रवेश करता है?
A.कॉर्निया
B.लेंस
C.पुतली
D.आइरिस
Ans: पुतली
Q19. आकाश का रंग नीला होने का कारण है
A.परावर्तन
B.प्रकीर्णन
C.अपवर्तन
D.इनमें से कोई नहीं
Ans: प्रकीर्णन
Q20. नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश किरणों का अधिकांश अपवर्तन होता है
A.नेत्रोद अंतर पृष्ठ पर
B.अभिनेत्र के अंतरपृष्ठ पर
C.कॉर्निया के बाहरी पृष्ठ पर
D.इनमें से कोई नहीं
Ans: कॉर्निया के बाहरी पृष्ठ पर
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